लघुकथा

चांद और चकोर

अचानक एक दिन कॉलेज में चन्द्रविजय ने कहा,” सुनो, चकोरी, पापा मुझे आगे की पढ़ाई के लिए टोक्यो भेज रहे है, एक महीने में मैं यहां से चला जाऊंगा।”
“कैसे तुमने ये सोच लिया, कि मैं तुम्हे बिना देखे, बिना मिले भी जीवित रहूंगी।” ये चकोरी के शब्द थे
“अरे, डिअर, दिल मे मेरे भी रह रह कर टीस उठ रही है, ये वो दर्द है, जो कोई पेनकिलर से भी खत्म नही होगा। क्या करूँ, पापा की ख्वाहिशों को मैं झुठला नही सकता। देखो मेरी आँखें, कल से एक सेकंड को भी तुम दूर नही हुई।”
एक वादा करता हूँ, चकोरी, जब भी तुम आकाश के चांद को देखोगी, तुम्हे मेरी सूरत दिखाई देगी, तुम ये गाना जरूर गुनगुनाना “जाने कितने दिनों के बाद गली में आज चांद निकला” और चकोरी का चंदू उससे भविष्य में जरूर मिलेगा, ये बोलकर चला गया।
भाग्य की रेखाएं बिना सोचे समझे कहीं भी मुड़ जाती हैं, और चकोरी के पापा ने उसकी शादी एक सूरज नामक लड़के से कर दी, चकोरी सिर्फ सूनी नजरो से अपना श्रृंगार देखती रह गयी। सूरज के ताप से प्यार तो नही सिर्फ एक धन वैभव का संसार पाया।
आज पूर्णमासी थी, गार्डन में घूमते हुए, अपने चंदू को देखते हुए, फिर गुनगुनाने लगी “जाने कितने दिनों के बाद गली में आज चांद निकला”
— भगवती सक्सेना गौड़

*भगवती सक्सेना गौड़

बैंगलोर