ग़ज़ल
कहता यूँ हूँ ख़ास बड़ा है।
दिल के मेरे पास बड़ा है।
जुमलों को भी सच माने वो,
सत्ता का जो दास बड़ा है।
आता उसको खास नहीं कुछ,
लेकिन फिर भी बास बड़ा है।
होता ही है कुछ तो यारो,
होता जब आभास बड़ा है।
बारिश से क्यूँ डरता फिर वो,
जल में जिसका वास बड़ा है।
— हमीद कानपुरी