लघुकथा : नई पहचान
आंगन बाड़ी की दीदी की सलाह पर किशोर दास अपनी छह साल की बिटिया को लेकर गांव के मिडिल स्कूल पहुंचा और हेडमास्टर को प्रणाम कर अपनी बिटिया का स्कूल में दाखिला हेतु निवेदन किया।
हेडमास्टर ने उसे अपने सामने की कुर्सी पर बैठने का इशारा किया और पूछा, “आप क्या करते हैं?”
“सर, मैं मजदूरी करता हूं, गरीब हूं, एक ही बिटिया है,चाहता हूं बिटिया गांव के स्कूल में पढ़ लिख ले।”
“क्या नाम है आपका?”
“जी,मेरा नाम किशोर दास है, दलित जाति का हूं।”
“मैंने आपकी जाति नहीं पूछी थी। बिटिया का क्या नाम है?”
“फेकनी, फेकनी नाम है बिटिया का”
“बड़ा ही बेतुका नाम है!”
“क्या करें सर, बिटिया के पहले दो बच्चे का भी जन्म हुआ था,गरीबी के कारण नहीं बचा पाए दोनों को,पहला सात महीने में दूसरा एक साल की उम्र में ही चल बसा। बिटिया की लंबी उम्र के लिए इसकी दादी ने नाम रख दिया फेकनी।”
किशोर दास की बातें सुन हेडमास्टर की आंखें गीली हो गई। “किशोर दास जी, जो बीत गई सो बीत गई। पुरानी बातें और पुरानी यादें दिमाग से निकाल दीजिए। बेटी का कोई सुंदर नाम रखे।”
“पापा, मेरा नाम तो अनिता दीदी ने इंदिरा रखा है, दीदी ने सभी को फेकनी कहने से मना कर दिया है” बिटिया ने अचानक कहा।
“जी सर, मेरी बिटिया का नाम इंदिरा रख दीजिए। बहुत तेज है बिटिया, सभी कहते हैं। बकरी चराने जाती है तो किताब, कॉपी और पेंसिल साथ ही ले जाती है” किशोर दास ने कहा।
“आपकी बेटी इंदिरा आगे चलकर आपका और समाज का नाम रोशन करेगी। कल से वह नियमित स्कूल आयेगी।”
“बहुत खुशी हुई सर,आज मुझे एक बेटी का बाप होने का संतोष और आत्मबोध प्राप्त हुआ” किशोर दास ने हाथ जोड़कर हेडमास्टर को धन्यवाद दिया।
— निर्मल कुमार डे