गीतिका/ग़ज़ल

बरसता सावन

मौसम-ए-इश्क है, उसपे ये बरसता सावन।
आभी जाओ के है, मिलने को तरसता सावन।
छुप गया चाँद, घटाओं के शोख चिलमन में,
साज़िशे’ कर के, बादलों से गरजता सावन।
दिल की बेचैनियां, बढ़ा रही बिजली की तड़प,
तेरी आहट की, धड़कनों पे, धड़कता सावन।
राह तकती रहीं, बेचैन निगाहें कब से,
तेरे दीदार की, हसरत में, मचलता सावन।
तुम न आए के, वही आलम-ए-तनहाई है,
हाए ख़ामोश, सदाओं पे, सिमटता सावन।
मैने देखा है घटाओं में अपनी आंखों को,
“स्वाती” पुरजोर निगाहों से छलकता सावन।
— पुष्पा “स्वाती”

*पुष्पा अवस्थी "स्वाती"

एम,ए ,( हिंदी) साहित्य रत्न मो० नं० 83560 72460 [email protected] प्रकाशित पुस्तकें - भूली बिसरी यादें ( गजल गीत कविता संग्रह) तपती दोपहर के साए (गज़ल संग्रह) काव्य क्षेत्र में आपको वर्तमान अंकुर अखबार की, वर्तमान काव्य अंकुर ग्रुप द्वारा, केन्द्रीय संस्कृति मंत्री श्री के कर कमलों से काव्य रश्मि सम्मान से दिल्ली में नवाजा जा चुका है