कसक
एक हसीं ख्वाब हो तुम,
खास एहसास हो तुम,
नही हो पास मेरे तुम,
फिर भी मेरे हो तुम,
साथ हँसीं था हमारा ,
चार दिन का था ये माना
पर हर पल को हमने,
जी भर कर जिया,
तुम थे आसमां का चांद,
श्वेत ध्वल उजले से,
देख कर मोहित हो कोई भी,
ऐसा सलोना रूप है तुम्हारा,
मैं थी एक चाहने वाली,
जो साथ तुम्हारा चाहती थी,
देख कर मनमोहन छवि
बरबस ही खिंची जाती थी
मुस्कान आती नही लबों पर,
तुम्हारे कभी भी,
एक रोब था ,नूर था चेहरे पर,
बस उसी रोब, नूर पर,
फिदा मैं हो गई,
मुस्कान भी ले आई ,
तेरे लबों पर एक दिन,
तुमको चाहा मैंने दिल से,
पाना नही चाहती थीं,
खोना भी नही चाहती थी,
पर खो गए तुम ,
दुनिया की भीड़ में,
दिल मे एक कसक दे कर ,
तुम गए ।
डॉ सारिका औदीच्य