कविता

हाँ, मैं लकीर का फ़क़ीर रहूँगा..!

प्रस्तुत है मेरी कुछ पंक्तियाँ जिसमें यह कहने का प्रयास है कि हमारी कुछ मान्यताएं ,परंपराएं व संस्कार हैं जिनका लकीर का फ़क़ीर बने रहने में हमें गर्व की अनुभूति होनी चाहिए।

 

सुबह सबेरे उठकर पहले
मातपिता को नमन करूँगा
स्नान ध्यान के बाद बैठ कर
कुछ पल को मैं मनन करूँगा
बात सत्य हो तो कहने से
कभी किसीसे नहीं डरूँगा
चाहे कोई कुछ भी बोले
सत्य मार्ग पर अटल रहूँगा
ऊँचे आदर्शों पर चलकर
सुंदर अपना चमन करूँगा
बुरी आदतें, ढोंग, दिखावा
सबको खुद से दूर रखूँगा
सही आदतों की लकीर का
बनकर मैं फ़क़ीर रहूँगा

अपनी सभ्यता और संस्कृति
का कभी नहीं अपमान करूँगा
कर न सके जो हथियारों के
दम पर प्यार से वह मैं करूँगा
अमन चैन और मानवता का
जग में कायम राज करुँगा
संस्कार के दम पर इक दिन
बनकर मैं नजीर रहूँगा
सही आदतों की लकीर का
बनकर मैं फ़क़ीर रहूँगा

राजकुमार कांदु

स्वरचित/ मौलिक

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।