ग़ज़ल
तन बदन से फूल मन से ख़ार निकले
लोग जितने भी मिले ऐयार निकले
आपसी सब ख़ास बातें आम कर दीं
दोस्त अपने आप में अखबार निकले
हम समझते थे जिन्हें औजार जैसा
वे तबाही के बड़े हथियार निकले
जिनसे थी सहयोग की उम्मीद बेहद
लोग वे ही राह की दीवार निकले
होठ से सच ने कहा कुछ भी नही पर
आँसुओं में दर्द के अश’आर निकले
ढ़ोंग के चोले उतारे वक्त ने तो
धर्म के सबसे बड़े ग़द्दार निकले
ग़ैर को अच्छे रहे इंसान बंसल
आदमी ख़ुद के लिये बेकार निकले
— सतीश बंसल