इन सरकारों का सर्कस
थोड़ी-सी भी शर्म अगर बची है, दोनों सरकारों में…. जब बिहार सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार भी यह कह रहा हो कि बिहार के नियोजित शिक्षकों को नियमित शिक्षकों के समान वेतन नहीं दिया जा सकता ! ऐसे में उनमें अगर जरा सी भी शर्म बची है, तो सभी सांसदों और विधायकों को देश व राज्य के लिए अवैतनिक सेवा देनी चाहिए तथा अनिश्चित भविष्य लिए नियोजित शिक्षकों की भांति उन्हें भी पेंशनादि लाभ नहीं दिए जाने चाहिए ! राज्य के वकील कहते हैं- नियोजित शिक्षक पंचायत शिक्षक हैं, तो पंचायत जाने !
देश की सबसे बड़ी पंचायत-कचहरी ‘सुप्रीम कोर्ट’ है, उनका कहना है, पंचायत ही सबकुछ है, तो आप (सरकार) वहां क्या करते हैं ? ….आपके शिक्षा पदाधिकारी घुसपैठिये की तरह विद्यालय क्यों जाते हैं ? राज्य सरकार और केंद्र सरकार का कहना है– नियोजित शिक्षक सरकारी सेवक नहीं हैं ! ….तो उनसे इलेक्शन सम्पन्न कैसे कराते हैं ?
–दोनों सरकार के बोल ‘….मौसेरे भाई’ की भांति है और दोनों के बर्त्ताव ‘सर्कस’ जैसी है !
नियोजित शिक्षकों के वेतन में इसतरह हो रही है कटौती ? नियोजित शिक्षकों की बहाली से पहले बिहार सरकार द्वारा 3,000 रु साइकिल राशि के लिए, 10,000 रु फर्स्ट डिवीज़न के लिए, 8,000 रु सेकंड डिवीजन के लिए, 54,000 रु बी.ए. पास अविवाहित युवतियों के लिए, 1,000 रु पोशाक के लिए, 500 रु नेपकिन के लिए, 50,000 रु अंतरजातीय विवाह के लिए इत्यादि-इत्यादि नहीं दी जाती थी, ये सभी राशि ‘नियोजित शिक्षकों’ के वेतनों से काटकर दी जाती है ! अगर 243 माननीय विधायक अपने-अपने वेतन- भत्ता और पेंशन न ले और इन योजनाओं के लिए दे दे ! … तो सभी कार्यालय में समान कार्य करनेवालों को समान वेतन मिलने लग जाएंगे !
भारत के तीन मुख्यमंत्री अपने को बेहद चालाक समझते हैं, अगर इनके नामकरण की जाय, तो एक नाम होगा– “अरविंद कुमार बैनर्जी” ! अबतो समझ गए होंगे, एक तो अनशनवीर हैं दिल्लीवाले, दूजे तो बिहारी को चोर बनाना चाह रहे हैं हमारे कुमार साहब नियोजित शिक्षकों को परेशान करके, तीजे हैं दूसरे देशों के घुसपैठिये की ऐसी पक्षधर कि रक्तपात कराना चाहती हैं सनक-वीरांगना बंगाल की झाँसा देनेवाली रानी !
श्री नीतीश कुमार को कभी ‘भारतरत्न वाजपेयी जी’ ने भारतीय राजनीति का चाणक्य कहा था । प्राचीन चाणक्य (विष्णुगुप्त) ने कहा था– “जिस शासन में या जिस प्रांत में या जिस सत्ता द्वारा शिक्षकों की कद्र न की जाय व शिक्षक इच्छित फल हासिल न कर सके, तो ऐसे शासक व राजा राजगद्दी पर बैठने मात्र के अधिकारी नहीं है ।” यह आधुनिक चाणक्य (नीकु) को जरा सी भी शिक्षकों के प्रति न प्रेम है, न अनुराग, न उनकी दुर्दशा पर पीड़ा ! चेतिये महाराज ! आज के चंद्रगुप्त जनता-जनार्दन है !