पप्पू पास हो गया
आज कॉलोनी में सुबह-सुबह जैसे ही एक प्रश्न गूँजा- “पप्पू पास हो गया?” प्रत्युत्तर में मानो कॉलोनी में कोरस सा छा गया- ‘हमारा भी पप्पू पास हो गया। हमारा भी पप्पू पास हो गया।’ बाद में पता चला ये मेरी कॉलोनी का ही नही पूरे देश का हिट गीत है “हमारा पप्पू भी पास हो गया।” सालों से पप्पू के बेहूदा प्रश्नों और तर्कों से परेशान माँ को सहसा विश्वास नहीं हो रहा था कि उनका पप्पू इस बार पंच्यानबे प्रतिशत अंक लेकर पास हो गया है, क्योंकि उनके पप्पू की बात सुनकर रिक्शावाला भी हँसने लगता था। उनके अनुसार पप्पू सबका मनोरंजन तो कर सकता था लेकिन पास कभी नहीं हो सकता था।
पर यह सच था कि पप्पू पास हो गया था। जो काम सालों से हजारों की ट्यूशन, कोचिंग और बुद्धिजीवी शिक्षक नहीं कर सके, वह एक छोटे से अदृश्य कीटाणु ने कर डाला। बेलाइन पप्पू आज ऑनलाइन पढ़ाई की पटरी पर चलकर पास हो गया था। पप्पू की माँ सोच रही थी कि यदि इस कोरोना की फोटो मिल जाती तो सरस्वती जी की फोटो की जगह लगा देती। सोने की मूर्ति बनाकर पाँच टाइम उसकी आरती उतारती।
अध्यापक महोदय दिल मसोसकर रह गये। यह वही पप्पू था जिसके पास हो जाने पर वे अपनी मूँछे तक मुढ़वाने की सार्वजनिक घोषणा कर चुके थे। बेचारे मुँह छिपाये घूम रहे थे कि पप्पू कहीं चौराहे पर उन्हे भीष्म प्रतिज्ञा याद न दिला दे। वह पप्पू जो घर से स्कूल के लिए निकलने बाद कक्षा में कम और सिगरेट के धुएँ के छल्ले बनाता हुआ टॉकीज़ -होटलों में लैलाओं की ज़ुल्फ़ों से खेलता हुआ ज्यादा मिलता, वह पप्पू बिना कक्षा में गये पास हो गया। यह आधुनिक शिक्षा प्रणाली का सबसे बड़ा चमत्कार है। इस कोरोना नाम के जीव ने भले ही लाखों लोगों को मौत की नींद सुला दी लेकिन हजारों पप्पुओ को आत्महत्या करने से बचा लिया। हे कोरोना! तुम धन्य हो। तुम्हारी प्रतिमा नगर के हर मुख्य चौराहे पर लगाने का प्रस्ताव मैं शिक्षामंत्री को देता हूँ। भविष्य में जब आरक्षण की बैसाखी पर लटक कर करोड़ों पप्पू देश का भविष्य गढ़ेंगे तो तुम्हारा नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा।
पप्पू को चीन हमेशा से भाता था। कभी-कभी तो वह घूमने भी चला जाता था। लगता था जैसे किसी पुरखे ने रिश्ता जोड़ दिया हो। चीन का थर्ड क्लास सामान पप्पू गले से लगाकर रखता था। सब समझाते रह गये ‘मेड इन चायना-नो गारंटी।’ आज पप्पू शान से कहता है कि चीन ने कोरोना का उत्पादन कर पप्पुओं को पास हो जाने की पूरी गारंटी दे दी है। पप्पू का नया नारा है – जब तक सूरज चाँद रहेगा, कोरोना का नाम रहेगा।
कबीर बाबा होते तो सिर पीट लेते। कहते -कहते दुनिया से चले गये कि- करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान। रसरी आवत जात से सिल पर परत निसान।। आज पप्पू के पास, पास होने का आसान फॉर्मूला है। वो काहे रस्सी से पत्थर काटेगा। वह तो कहता है – करत करत अभ्यास के कोई न होत सुजान । कोरोना माई की किरपा से हम हो गये विद्वान ।।
हमारे ज़माने में पप्पू के लिए परीक्षा में पास होना परीक्षा हो जाने के बाद परिश्रम और शोध का विषय होता था। पप्पू परीक्षा के पर्चे देने के लिए पढ़ाई करनेवाली मेहनत पर विश्वास नहीं करता था। क्यों? क्योंकि वह कर्मयोगी था। घंटों टेबल लैंप के प्रकाश में बैठकर अध्ययन करना उसे अकर्मण्यता लगती थी। उसके पुरुषार्थ को ठेस पहुँचाती थी। वह पुरुषार्थी पेपर निपटते ही द्रोणाचार्य की तलाश में निकल पड़ता जो जो बिना अंगूठा माँगें कुछ नोटों में उसे पास कर देता था। पप्पू भी खुश होता था कि खानदान की नाक कटने से बच गयी और द्रोणाचार्य भी खुश कि बिना अंगूठा कटवाये मोटी गुरू दक्षिणा मिल गयी। कुछ द्रोणाचार्य तो परीक्षा संपन्न होने के कुछ महीने बाद अक्सर पूँजीपति से लगते थे। मैंने उस समय अनेक गणित-विज्ञान-अंग्रेजी के द्रोणाचार्यो को बैंक में नये खाते खुलवाना देखा है। पर आज इस नासपीटे कोरोना और ऑनलाइन पढ़ाई ने कई द्रोणाचार्यो की मुकेश अंबानी बनने की इच्छा पर पानी फेर दिया। आज पप्पू बिना किसी द्रोणाचार्य के सहारे पास हो गया।
पास होने पर पप्पू और मम्मी-पापा बहुत खुश हैं। लेकिन वह अर्जुन आँसू बहा रहा है जो दिन-रात साधना रत था और जिसका लक्ष्य सिर्फ चिड़िया की आँख थी।
— शरद सुनेरी