कविता
कविताएं सब हो गई उदास,
शब्दों ने हसना छोड़ दिया,
कोई खता हुई क्या पृथ्वी से
जो स्वर्ग से नाता जोड़ लिया।
आजीवन अविवाहित रहकर
जीवन को संघ से जोड़ दिया,
प्रचारक बन इस धरती पर,
हिन्दुत्व का फिर प्रचार किया,
हिन्दू, हिन्दी, हिन्दोस्तान
का आपस मे गठजोड़ किया,
कोई खता हुई क्या पृथ्वी से
जो स्वर्ग से……….।
काव्य रुचि बचपन से थी,
है हर कविता आनंदमयी,
हिन्दू मेरा रग रग परिचय,
या फिर मौत से ठन गई,
ऐसी रचनाए रचकर क्यों
फिर काव्य से नाता तोड़ दिया,
कोई खता हुई क्या पृथ्वी से
जो स्वर्ग से……….।
राजनीति मे रखा कदम,
संसद से नाता जोड़ लिया,
नेता के भेष मे रहकर भी,
हर एक फैसला अहम लिया,
परमाणु बम बनाकरके,
शत्रुओं का भ्रम तोड़ दिया,
कोई खता हुई क्या पृथ्वी से
जो स्वर्ग से……….।
विस्मृत करना ना संभव है,
चाहे कोटि कोटि जतन करें,
ऐसे कविवर और नेता को,
हम शीश झुकाकर नमन करें,
हे!अटल जी फिर वापस आना,
उस जहाँ मे जिसको छोड़ दिया,
कोई खता हुई क्या पृथ्वी से
जो स्वर्ग से……….।
— प्रदीप शर्मा