गीत/नवगीत

जान दे गये वर्दी में

कभी हैं जलते तेज धूप में,कभी ठिठुरते सर्दी में
अपने प्यारे वतन की खातिर,जान दे गये वर्दी में।

अपना सब घर द्वार छोड़के,खड़े हुए सीमा पे तन के
दुश्मन पर हैं हावी रहते,ये हैं सच्चे वीर वतन के।
इन्हें नहीं बारिश का डर है,ना परवाह तूफानों की
भारतमाँ की लाज बचाने,आहुति दी प्राणों की।
चाहे हो उरी का हमला,या हो सर्जीकल स्ट्राइक
दुश्मन से बदला लेने को ,बन जाते हैं डाइनामाइट।

शान तिरंगे की कायम, रखते बारिश और सर्दी में
अपने प्यारे वतन की खातिर,जान दे गये वर्दी में।

दुश्मन भी हैं थरथर काँपें, जब जब देखा पराक्रम
मातृभूमि की सेवा करना,इनका है एकमात्र धरम।
सदा दूर रहते बच्चों से ,दूर रह रही माँ और बीबी
बूढे बाप का मात्र सहारा ,इनके भी घर बसे गरीबी।
अमर शहीदों को सब मन से,शीश झुकाते बूढे बच्चे
ये नहीं कोई फिल्मी नायक,मगर यही हैं हीरो सच्चे।

मगर आज कुछ मेरे भाई,छीने मौत बेदर्दी ने
अपने प्यारे वतन की खातिर,जान दे गये वर्दी में।

प्रदीप शर्मा

आगरा, उत्तर प्रदेश