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तुलसीदास केंद्रित अंतराष्ट्रीय तरंग संगोष्ठी : शाश्वत है तुलसी साहित्य

हिंदी प्रचारिणी सभा,अलीगढ़ एवं विश्व संस्कृत हिंदी परिषद, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में “वर्तमान परिप्रेक्ष्य में तुलसी साहित्य की प्रासंगिकता”विषय पर एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता हंडिया पी.जी. कॉलेज, प्रयागराज के पूर्व प्राचार्य डॉ सभापति मिश्र ने की, मुख्य अतिथि के रूप में डॉ तालकेश्वर सिंह, पूर्व आचार्य एवं अध्यक्ष, हिंदी विभाग, मगध विश्वविद्यालय, बोधगया रहे।
 वेबिनार का सफल, सरस एवं प्रशंसनीय संचालन नई दिल्ली की सुप्रसिद्ध कवयित्री, लेखिका  एवं साहित्यकार डॉ पूनम माटिया ने किया।
सभी आगंतुकों का शब्दों सुमनों के माध्यम से प्रभावशाली स्वागत वेबीनार के संयोजक डॉ दिनेश कुमार शर्मा, प्रधानाचार्य, हिंदू इंटर कॉलेज अलीगढ़ ने किया।
 सरस्वती वंदना भागलपुर (बिहार) के प्रसिद्ध कवि राजकुमार प्रसाद ने प्रस्तुत की तथा छपरा (बिहार)की संगीत शिक्षिका प्रियंका कुमारी ने  सस्वर पाठ के साथ तुलसी वंदना प्रस्तुत की।
       रांची विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, हिंदी विभाग, डॉ. जंग बहादुर पांडेय ने बीज वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए कहा कि महाकवि गोस्वामी तुलसी दास ने काल को अपनी रचनाओं में दबाए रखा न कि वे काल के वश में रहे। इसलिए हम आज भी उन्हें याद करते हैं।वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उनके साहित्य में प्रासंगिकता विद्यमान है।हिंदी साहित्य में राम कथा का वर्णन करने वाले अनेक कवि हुए हैं लेकिन वाल्मीकि के अतिरिक्त तुलसी के समान किसी ने भी राम कथा का वर्णन नहीं किया है। गोस्वामी तुलसीदास का साहित्य आज भी हमारा मार्गदर्शन करता है,विभिन्न समस्याओं का समाधान करता है। उन्होंने कहा कि यदि इस संसार रूपी भवसागर से पार होना है तो राम से ममता रखिए। तुलसी की प्रासंगिकता उस समय से आज के समय में अधिक है। उनका साहित्य समस्या नहीं, समाधान है। तुलसी भारतीय संस्कृति के व्याख्याता हैं। रामचरितमानस के पढ़े बिना जीवन निरर्थक है, यह तथ्य तुलसी की प्रासंगिकता को रेखांकित करता है।
बिहार के जिला नवादा(बिहार) से मगही साहित्य के स्थापित विद्वान रामरतन प्रसाद सिंह रत्नाकर ने विशिष्ट वक्ता के रूप में अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि तुलसी लोकनायक साहित्यकार थे। उनके साहित्य में लोकमंगल की भावना विद्यमान है जो आज भी प्रासंगिक है। उनका साहित्य सार्वकालिक है, हर काल में उनका काव्य प्रासंगिक है। उनका काव्य समाधानात्मक है। रामचरितमानस विश्व की समस्त समस्याओं का समाधान करता है।
बिहार के ही हिंदी एवं मगही साहित्य के निष्णात विद्वान लालमणि विक्रांत ने विशिष्ट अतिथि के रूप में अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि गोस्वामी तुलसीदास  विश्व वाङ्गमय के मार्तण्ड हैं, उनका साहित्य कालजयी है, उनका साहित्य सांस्कृतिक चेतना का साहित्य है जो समाज को जोड़ता है, उनका साहित्य राम को अपना नायक चुनता है।उनका साहित्य वर्तमान में समस्या नहीं, समाधान प्रस्तुत करता है, चरित्र निर्माण करता है, संबंधों की स्थापना करता है,उनका साहित्य कालातीत साहित्य है। उनका साहित्य जननी और जन्मभूमि का साहित्य है। उनके साहित्य में देशभक्ति है, उनका साहित्य देश प्रेम का साहित्य है जो संपूर्ण विश्व के लिए ज्ञानकोष है। उनकी रचनाएं ज्ञान कलश हैं।
    मुख्य अतिथि के रूप में मगध विश्वविद्यालय, बोधगया के पूर्व प्रो. एवं अध्यक्ष, हिंदी विभाग,डॉ. तालकेश्वर सिंह ने अपने विचार उद्धृत करते हुए कहा कि गोस्वामी तुलसीदास का संपूर्ण साहित्य मनभावन है, अद्वितीय है जिसमें विलक्षण चरित्र चित्रण है। उनकी रचना मानस में संवेदना है।इस संवेदना को बाबा तुलसीदास ने सर्वत्र अंगीकार किया है।  भगवान राम साक्षात ईश्वर हैं, वे वन को जाते हैं, यहां चारित्रिक संवेदना अभिव्यक्त है।आज राम कण-कण में व्याप्त है। रामचरितमानस भारतीय संस्कृति का अपूर्व ग्रंथ है। तुलसीदास जी ने विभिन्न प्रसंगों के साथ अपने काव्य की प्रासंगिकता को जोड़ा है। समाज के बहिष्कृत लोगों को समाज से संयोजित किया है। भगवान राम शबरी के आश्रम में जाते हैं। भगवान राम संपूर्ण विश्व के आराध्य हैं।तुलसी के मानस में सर्वत्र मानव का अनुशासन है जो आज की परिस्थितियों में भी प्रासंगिक है।
      वैबिनार की अध्यक्षता करते हुए हंडिया पी.जी. कॉलेज, प्रयागराज के पूर्व प्राचार्य एवं तुलसी साहित्य के मर्मज्ञ डॉ. सभापति मिश्र ने कहा कि तुलसी की काव्य सर्जना का आधार बहुत सहज है।उन्होंने संस्कृत की कथा को हिन्दी विद्वानों से तुलनात्मक रूप में प्रस्तुत की है। राम कथा बहुत गूढ़ है। तुलसी ने नाना पुराण निगम को सम्मत किया,उन्होंने युगीन समस्याओं को समाहित करके अपने काव्य में समाहित किया।  ‘बरसत हरसत लोग सब करसत लखै न कोय’ का उदाहरण देते हुए तुलसी ने कर प्रणाली का निर्धारण किया। गोस्वामी तुलसीदास ने कहा कि राजा को मुख के समान होना चाहिए- ‘मुखिया मुख सो चाहिए खानपान सौ एक’ का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए गोस्वामी तुलसीदास ने आदर्श राज्य की स्थापना की जो आज भी प्रासंगिक है। आज हम देखते हैं कि जीवन की समस्त समस्याओं का समाधान तुलसी के काव्य में विद्यमान है। इस प्रकार इस अंतरराष्ट्रीय तरंग संगोष्ठी का समापन हुआ। लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी, जालंधर के  प्रो.नागेन्द्र नारायण ने सभी विद्वान वक्ताओं एवं सुधी श्रोताओं का आभार व्यक्त किया।प्रो.नागेन्द्र नारायण इस वेबीनार के तकनीकी संयोजक थे, साहित्यिक संयोजक डॉ.दिनेश कुमार शर्मा थे।  इस वेबीनार का समापन राष्ट्रगान की ध्वनि के साथ हुआ।

डॉ. पूनम माटिया

डॉ. पूनम माटिया दिलशाद गार्डन , दिल्ली https://www.facebook.com/poonam.matia [email protected]