मुक्तक/दोहा

पावस और सावन

विधा – दोहे
पावस / सावन

पावस की महिमा प्रबल ,चहुँ दिस बसी उमंग |
हरी भरी धरती लगे , झरे प्रीत मकरंद ||

बरसे सावन बादरी , नाच रहे हैं मोर |
कोयल कुहके बाग में , मन मे उठे हिलोर ||

कजरारे घन आय के , बरसावें जब नीर |
तपती धरती खिल उठे ,मिटे जगत की पीर ||

सावन शिव का मास है , शिव करते उद्धार |
शिव की कर आराधना , शिव से है संसार ||

बागों में झूले पड़े , सखियाँ मोद मनाय |
कजरी सावन गाय के , लंबी पेंग बढाय ||

साजन संग सावन सखी, जियरा अति हुलसाय |
जिनके पिय परदेश में ,बिरहन आग लगाय ||

कजरारे घन देख के , नाचे मन का मोर |
स्वाती की इक बून्द को ,करे पपीहा शोर ||

आया सावन झूम के ,लेकर हर्ष अपार |
भाई बहना के लिये , प्रीत भरा उपहार ||

धानी चूनर ओढ़ के , धरा रही बलखाय |
वन उपवन हर खेत में , अली कली मुसकाय ||

दादुर मोर पपीहरा , नित नव राग सुनाय |
कुहुक कोयलिया बाग में ,झींगुर शोर मचाय ||

पड़े हिंडोले बाग में , बिखरे मोहक रंग |
कजरी की मनमोहनी ,नाचें सखियाँ संग ||

मेंहदी रची गदेलियाँ ,चुड़ियाँ हैं बहुरंग |
करती शिव आराधना ,मांगें पिय का संग ||

मंजूषा श्रीवास्तव’मृदुल’

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016