काम न आई प्रतिश्रुति करना पड़ा घर वापसी
गंगा ‘अनु’
विधानसभा चुनाव 2021 भारत के बंगाल-असम-केरल और तामिलनाडु में हुआ था लेकिन इन चार राज्यों में पूरेे देश की नजर बंगाल पर ही टिकी हुई थी। यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं उनके नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के नेताओं ने बंगाल में सुनार तैयार करने नहीं बल्कि ‘सोनार बांग्ला’ बनाने के लिए आंधी लाई थी। लेकिन भाजपा का क्या हश्र हुआ बंगाल में? ममता को मात देने के लिए भाजपा ने अपने ज्यादातर दिग्गजों को चुनावी रण में उतार दिया था। अब इनकी हार से पार्टी की साख के साथ ही इनकी अपनी साख को भी काफी नुकसान पहुंचा है। चुनावी रैलियों में भाजपा लगातार 200 से ज्यादा सीटें बंगाल में जीतने का दावा कर रही थी। तमाम दिग्गजों को चुनावी मैदान में उतारने के बाद भी ममता बनर्जी भाजपा पर भारी पड़ी। ममता बनर्जी ने तीसरी बार मुख्यमंत्री बनी और सरकार बनाई।
चुनाव से पहले अमित शाह ने आश्वासन दिया था कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद घुसपैठियों को भगाया जाएगा। 01 अप्रैल को दक्षिण 24 परगना के जयनगर में जनसभा में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि बंगाल में भारतीय जनता पार्टी 200 से अधिक सीटें जीतकर सरकार बनाएगी। चुनाव प्रचार के दौरान मोदी ने कहा कि असल परिवर्तन की शुरुआत में एक माह से ज्यादा नहीं है। कुछ लोग जनता के अधिकार में रोड़े अटकाने की कोशिश कर रहे हैं। वैसे लोगों से अपील है कि संविधान और कानून का सम्मान करें। मोदी ने कहा कि असल परिवर्तन की लहर को तेज करने के काम भी इसी क्षेत्र से होने वाला है। इसी दिन हावड़ा जिले में जनसभा को संबोधित करते हुए मोदी ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी पर भी हमला बोलते हुए कहा कि घुसपैठिए दीदी के अपने और भारतीय हो गए बाहरी’। बंगाल का सपना हमारा बहुत बड़ा है। इसलिए इस बार जोर से छाप.. कमल छाप। उन्होंने कहा था कि 02 मई के बाद यहां डबल इंजन की सरकार बनेगी और देख लेना है कि भाइपो विंडो बंद होगा और निवेश का विंडो खुलेगा, उद्योग का विंडो खुलेगा। आप डरें नहीं। आप निश्चित होकर वोट दें।
रायगंज के सांसद और केंद्रीय महिला एवं बाल कल्याण राज्य मंत्री देवश्री चौधरी ने 01 अप्रैल को रायगंज विधानसभा क्षेत्र के भाजपा उम्मीदवार कृष्णा कल्याणी के समर्थन में चुनाव प्रचार के दौरान कहा था कि आम आदमी तृणमूल सरकार के कुशासन से मुक्ति के लिए भाजपा को सत्ता में लाएंगे और मोदीजी के नेतृत्व में एक स्वर्णिम बंगाल का निर्माण करेगे। लोग समझ गए हैं कि केवल भाजपा बंगाल को सोनार बंगाल बना सकती है और इसलिए जनता इस विधानसभा चुनाव भाजपा को जिताकर उसे सत्ता में लाने जा रही है।
कभी समय था जब तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी ने मुकुल राय को त्रिपुरा एवं मणिपुर के संगठन को संभालने का दायित्व दिया था। मुकुल रॉय ने दोनों राज्यों में जाकर कई जनसभाएं भी की। ममता बनर्जी के करीबी और एक समय तृणमूल कांग्रेस के नंबर दो रहे मुकुल रॉय 2017 में पार्टी छोड़ भाजपा में शामिल हुए थे और वह पहले ऐसे बड़े नेता थे जो तृणमूल छोड़ भाजपा में शामिल हुए।
उनके बाद शुभेन्दु अधिकारी तृणमूल के अन्य कई नेता भी भाजपा में शामिल हुए। इनमें से कई को भाजपा में लाने के पीछे रॉय का हाथ रहा। अब जब वेे भाजपा से तृणमूल ने वापस आ चुके हैं तो उन्हेंं फिर से त्रिपुरा एवं मणिपुर के संगठन को संभालने का दायित्व पर देने पर विचार किया जा रहा है। मुकुल के तृणमूल में वापसी के बाद त्रिपुरा के मुख्यमंत्री विप्लव देव की कुर्सी हिलने लगी है।
त्रिपुरा भाजपा में आंतरिक कलह चरम पर पहुंच गई है। शायद केंद्रीय नेतृत्व ने पश्चिम बंगाल के चुनावों में भाजपा की हार के साथ-साथ त्रिपुरा जनजातीय परिषद चुनावों में अपेक्षाकृत खराब प्रदर्शन के बाद समस्या की गंभीरता को समझ लिया है। पिछले एक साल से मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब और पार्टी की राज्य इकाई के वर्तमान नेतृत्व के खिलाफ भाजपा विधायकों और वरिष्ठ नेताओं का एक वर्ग लगातार बगावत कर रहा था। मुकुल राय थे के तृणमूल में वापसी के बाद पूर्व स्वास्थ्य मंत्री सुदीप रॉय बर्मन और समर्थकों में काफी संतोष व्याप्त है। मुकुल के तृणमूल में वापसी के बाद सुदीप बर्मन के एक सहयोगी विधायक ने कहा कि बस समय का इंतजार है। सुदीप रॉय कभी त्रिपुरा प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष एवं विधानसभा विरोधी नेता थे। उन्होंने मुकुल राय के माध्यम से ही राजनीति शुरू की थी एवं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को त्रिपुरा बुलाकर कई जनसभाएं भी की थी। 2018 विधानसभा चुनाव के समय मुकुल राय के साथ रहकर ही उन्होंने भाजपा के साथ निभाया था।
मुकुल रॉय के भाजपा छोड़ने के बाद ही भाजपा में मची टूट को रोकने के लिए 17 जून से भाजपा के केंद्रीय महासचिव शिव प्रकाश मैदान में उतर गए। लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ बल्कि 20 जून को अलीपुरद्वार जिलाध्यक्ष गंगा प्रसाद शर्मा ने भाजपा छोड़कर तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया। गंगा प्रसाद ने कहा कि जिला नेतृत्व को भाजपा ने कभी भी महत्व नहीं दिया है। चुनाव के पहले हम लोगों ने ही काम किया। उन्होंने कहा कि वे चुनाव के पहले ही तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो सकते थे। लेकिन तब हमें गद्दार कहा जाता। इसलिए चुनाव के बाद हमने तृणमूल कांग्रेस का दामन थामा है।
तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने से पहले ही उन्होंने बिनोद मिंज, वीरेंद्र बोरा, बिप्लब सरकार और कई अन्य लोगों के तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने के संकेत दे चुके हैं।
किस्मत देखिए तृणमूल कांग्रेस की – 23 जून को भाजपा के राज्य कमेटी के सदस्य भास्कर दे का मोहभंग हो गया है। उन्होंने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। भास्कर दार्जिलिंग में पर्यवेक्षक का पदभार भी संभाल रहे थे। उन्होंने इंटरनेट मीडिया पर खुद इसकी जानकारी दी, हालांकि वे तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने जा रहे हैं या नहीं, अभी इसका खुलासा नहीं किया है। दूसरी ओर पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार को लेकर भाजपा नेता तथागत रॉय ने एक बार फिर अपनी पार्टी के नेताओं की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहा कि मुझे समझ नहीं आता कि जिस तरह से भाजपा कार्यकर्ताओं पर हमले हो रहे हैं और घरों में तोड़फोड़ की जा रही है, क्या राज्य में प्रशासन है? अब कैलाश विजवर्गीय कहां हैं, कहां हैं अरविंद मेनन? उन्हें लोगों के साथ होना चाहिए।
इधर मुकुल राय अपने विधानसभा क्षेत्र कृष्णानगर (नदिया) से भाजपा को तोड़ना शुरू किया।तृणमूल में शामिल होने के बाद मुकुल ने जून के अंत में पहली बार कृष्णानगर में कदम रखा। उनके साथ उनके पुत्र शुभ्रांशु रॉय भी थे। मुकुल रॉय की मौजूदगी में कई पूर्व पार्षदों समेत भाजपा के सैकड़ों कार्यकर्ता रविवार को तृणमूल कांग्रेस में शामिल हुए। चुनाव में भाजपा की हार के बावजूद मुकुल ने अपने निर्वाचन क्षेत्र से 35 हजार मतों से जीत हासिल की। मुकुल और उनके पुत्र ममता बनर्जी और अभिषेक बनर्जी की मौजूदगी में तृणमूल में शामिल हुए थे। मुकुल रॉय ने कहा कि लम्बे समय के बाद मैंने कृष्णानगर में पैर रखा है। बहुत से लोगों को तृणमूल कांग्रेस में वापस जाना चाहते हैं यह देखकर अच्छा लग रहा है। उन्होंने कहा कि आज जितने लोग तृणमूल कांग्रेस में शामिल हुए हैं वे सभी भाजपा में थे।