सामाजिक

ईश्वर के नाम पत्र

मानवीय मूल्यों का पूर्णतया अनुसरण करते हुए यह पत्र लिखने बैठा तो सोचा कि सच्चाई भी बताता चलूं। उससे भी पहले अपने स्वभाव की औपचारिक परंपरा का निर्वहन करते हुए पूरी तरह स्वार्थवश आपके चरणों में दिखावटी शीष भी झुका रहा हूँ, ताकि आप कुपित होकर भी मेरा अनिष्ट करने की सोचो भी मत।क्योंकि आप मानव तो हो नहीं, ये अलग बात है कि प्रभु जी आज भी पुरानी विचारधारा में मस्त हो।अरे अपने कथित महल /कुटिया /धाम से बाहर निकलिए, तब देखि कि दुनियां और हम मानव कहाँ तक पहुंच गये हैं,कितना विकास कर लिया है। मगर सबसे पहले एक मुफ्त की सलाह है कि बस अब लगे हाथ एक एंड्रॉयड मोबाइल ले ही लीजिए, बैठे सारी दुनियां का समाचार लीजिए, कुछ चैट शैट कीजिये, अपनी एक यूट्यब चैनल बनाइए, पलक क्षपकते ही किसी से बातें करिए।कारण कि अब पत्र लिखना भी छूट ही गया है,पोस्टकार्ड से भी कम कीमत में झट से बात करो,तनावों से बचो।यही हमारी सोच है।काश आपके पास ये सुविधा होती तो वीडियो काल से आपको यहां का सीधे नजारा दिखाता।
………….।ओह अब समझा आप परेशान क्यों हैं?
अरे प्रभु, ये क्या बात हुई आप सबकी खबर रखते हो,पर उनके जुगाड़ तंत्र को नहीं समझते।बस आप यमराज को अपनी इच्छा भर बताइये फिर देखिये मोबाइल के ढेर लग जायेंगे।मगर आप हैं कि बस…………।
और हाँ एक राज की बात भी कहनी है आपके पास मोबाइल भले नहीं है पर यमराज जी तो आये दिन नये नये महँगे मोबाइलों से खेल रहे हैं। तभी तो कोरोना में उनकी कार्य पद्धति एकदम बदली बदली सी दिखी। चैंटिंग में इतना मस्त रहने लगें है कि बस पूछो मत।
वैसे तो प्रभु ये इधरउधर की बातें करना अच्छा तो नहीं लगता पर क्या करूँ, मजबूर जो हूँ, आखिर आपका ही बनाया इंसान हूँ।
कोई बात नहीं प्रभु अब यमराज को आप ही सँभालना।वैसे यमराज की गिद्ध नजर हमारे आपके संबंधों पर है। फिर जब हम आपके सीधे संपर्क में हैं तो मेरा विचार है कि यमराज जी मेरा नुकसान करने से पहले आपकी मान प्रतिष्ठा का ख्याल तो जरूर रखेंगे।
………….सो गये क्या प्रभु?ये पत्र चीज ही ऐसी है कि हंसाती, रुलाती, सुलाती भी है।मतलब आप बोर हो रहे हैं।
कोई बात नहीं मैं ही यमराज से सीधे फोन पर बात कर लूँगा कि जब वे हमारे एरिया में आयें तो हमसे मिलकर जायें जिससे मैं आपके लिए सिम सहित मोबाइल भेज सकूँ अनलिमिटेड काल, डाटा की सुविधा के साथ।
बस प्रभु मुझे भी नींद आने लगी है।अब बंद करता हूँ अब तो फोन पर ही बात करुँगा।तब तक के लिए विदा।जय हो प्रभु ।मेरा कल्याण हो आपकी ओर से मेरे लिए फिलहाल इतना ही।
भविष्य में आपको होने वाली तमाम असुविधाओं के लिए हमें दिल से खेद है।
धरती पर आपका सबसे बड़ा शुभचिंतक

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921

One thought on “ईश्वर के नाम पत्र

  • गंगा ‘अनु’

    क्या कहूं, बड़ी मस्त कहानी लिखीं है आपने क्या कहूं बड़ी मस्त कहानी लिखीं है आपने

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