कुप्रथा के साथ नहीं !
इस क्षेत्र में
पहलीबार
दादाजी की मृत्यु पर
भोज नहीं किए थे.
यह कुप्रथा है !
यह कुपरम्परा है।
पूर्वजन्म या पुनर्जन्म
या दोनों
लोगों को सिर्फ
सांत्वना देने का
साधन है
कि इस जन्म में
कुरूप हो तो
अगले जन्म में
सुंदर प्रिंस या
प्रिंसेस बनोगे !
सच्चा सुख
‘अध्यात्म’ है !
किसी ने
ठीक ही कहा है-
किसी के दिल में
रहते हो
तो घर बनाने की
जरूरत नहीं,
किसी की साँसों में
रहते हो
तो शहर बसाने की
जरूरत नहीं !