यह कैसा अवकाश ?
यह कैसा अवकाश है, जिसे देकर भी अनुपस्थिति पर जीवनयापी वेतन से वंचित कर दिया जाता है ? यह कैसी स्वतंत्रता है, जिसके दिवस में कर्मी न स्वतंत्र रह सकता है, न ही गणतंत्र ! यह हम वाकिफ हैं, भारत को स्वतंत्र कराने में अनगिनत सेनानियों ने अपने प्राणों की आहूति दिए।
सबके यह तर्क हो सकते हैं कि सरकारी कर्मी मात्र 2 दिन इसके लिए समर्पित नहीं कर सकते क्या ? यहां प्रश्न उभरता है, प्रत्येक भारतीय अपनी स्वतंत्रता दिवस को ‘मिस’ नहीं कर सकते , परंतु एक तो सरकारी कार्यालय में अगर ये दोनों दिवस मनाये ही जाने हैं, तो सरकारी अवकाश कैलेण्डर में इन दोनों दिवसों का जिक्र होने ही नहीं चाहिए और अगर उल्लेख है तो इन सरकारी कर्मियों को अपने-अपने घरों पर स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस मनाने तो दीजिए।
वैधानिक तौर पर स्वतंत्रता दिवस मनाने ही चाहिए- जैसे कोई आवश्यक अर्थ निकलते ही नहीं है । जबकि श्री नवीन जिंदल के ‘वाद’ में माननीय उच्चतम न्यायालय ने हर भारतीयों को अपने-अपने घरों में नियमानुसार राष्ट्र ध्वज फहराने की अनुमति दे दिया है, फिर सरकारी दण्ड क्यों ?
आइये, इसपर हम मनन अथवा चिंतन करते हैं।
मैंने इस सम्बन्ध में आर. टी. आई. यानी सूचना का अधिकार अधिनियम अंतर्गत गृह मंत्रालय, भारत सरकार से जवाब-तलब किया, तो मंत्रालय के जन सूचना अधिकारी ने मेरी सूचना को कार्मिक, पेंशन और शिकायत मंत्रालय, नई दिल्ली को अंतरित करते हुए इस सम्बन्ध में मुझे ‘राष्ट्रीय झंडा संहिता’ थमा दिया।
मैंने इनका आद्योपांत अध्ययन किया, इनमे कहीं भी ‘बाध्य’ विषयक किसी भी स्थिति का वर्णन नहीं हैं , चूंकि यह दिवस मनाय जाना गौरव भाल की चीज है , इसलिए इसे स्वतः स्फूर्त मनाते आये हैं । यह परंपरा भी है, अनिवार्यता नहीं ! उधर कार्मिक, पेंशन और शिकायत मंत्रालय से जो जवाब प्राप्त हुआ, वो भी ऐसा कुछ भी स्पष्ट नहीं लिखा है, फिर स्वतंत्रता दिवस में सरकारी कर्मी के द्वारा कार्यालयों में जबरन उपस्थिति करवाना गैर कानूनी है।