गीत/नवगीत

आचमन

मीत ने गीत का आचमन जो किया,
तार वीणा के फिर झनझनाने लगे!
स्याह सूनी अमावस के जैसा हृदय,
रात पूनम की बनकर रिझाने लगे!
मीत ने गीत का आचमन जो किया….।
शब्द हैं पुष्प और  अर्चना गीत है,
प्रार्थना आरती, वंदना  दीप है!
पुष्पमाला को लेकर समर्पण की हम,
थाल पूजा का फिर से सजाने लगे!
मीत ने गीत का आचमन जो किया….।
सूखी तपती धरा सा,ये जीवन मेरा,
मेघ बन कर वो बरसे इला खिल उठी!
सोंधी मिट्टी से फिर मन मयूरी हुआ,
गीत सावन के हम गुनगुनाने लगे!
मीत ने गीत का आचमन जो किया….।
राग छेड़ो अगर,रागनी बनके तुम ,
बनके सुर साज तुझमे समां जाऊंगा!
प्रीत का गीत बनकर के मनमीत फिर
ताल सरगम की हम तो बजाने लगे!
मीत ने गीत का आचमन जो किया….।
रंग भरकर के जीवंत जीवन किया,
भाव बिखरे छटा इंद्रधनुषी खिली!
यूं उदासी भरा था अभी चित्रपट,
उगते सूरज को अब हम बनाने लगे!
मीत ने गीत का आचमन जो किया….।
कूकी कोयल सुरभि मन बसंती हुआ।
फूली सरसों फुटित मन की कलियां हुई।
आगमन है तुम्हारा या ऋतुराज का,
खेत खुशियों के फिर लहलहाने लगे।
मीत ने गीत का आचमन जो किया….।
— पंकज त्रिपाठी 

पंकज त्रिपाठी कौंतेय

हरदोई-उत्तर प्रदेश