बच्चों में जीवन मूल्यों को रोपती है ई-बुक ‘रोचक पहाड़े’
शिक्षा जीवन को संवारती है, गढ़ती है। इस मायने में किसी व्यक्ति के जीवन में प्राथमिक शिक्षा का महत्व सर्वोपरि होता है क्योंकि प्राथमिक शिक्षा ही व्यक्ति के जीवन-प्रासाद का आधार होती है। इसलिए प्राथमिक शिक्षा जितनी समझ-बूझ भरी एवं संवेदनायुक्त होगी, जीवन-उपवन उतना ही सुवासित एवं हराभरा होगा। जीवन दृष्टि उतनी निर्मल एवं व्यापक होगी। जीवन का कर्म फलक उतना ही विस्तार लिए होगा। बच्चों के जीवन में प्राथमिक शिक्षा जितनी महत्वपूर्ण है, उससे कहीं अधिक महत्व एवं उत्तरदायित्व शिक्षकों का होता है जो बच्चों के साथ काम करते हैं। यदि शिक्षक विषय की स्पष्ट समझ, बच्चों के प्रति आत्मीयता एवं मैत्रीपूर्ण भाव रखने वाले होते हैं तो वे लगातार न केवल अपनी शिक्षण शैली में उचित एवं आवश्यक परिवर्तन करते रहते हैं बल्कि नवाचारों के माध्यम से विषय को सरल, सुग्राह्य एवं बोधगम्य बनाते हैं ताकि बच्चे रुचि पूर्वक कुछ नया सीखते हुए आगे बढ़ते रहें। शिक्षकों के ये नवाचार बच्चों के साथ ही अन्य शिक्षकों को भी प्रेरित करते हैं। एक ऐसा ही प्रेरक नवाचार ‘रोचक पहाड़े’ ई-बुक के रूप में मेरे सम्मुख है। जिसे तैयार किया है मुरादाबाद के चार शिक्षक-शिक्षिकाओं की टीम ने, जिसमें दीपक कौशिक, दीप्ति खुराना, राजीव गुर्जर और आयुषी अग्रवाल शामिल हैं। इसके पहले भी इस उत्साही नवाचारी टीम ने कक्षा 6, 7 एवं 8 की पुस्तक ‘महान व्यक्तित्व’ का पद्य रूपांतरण किया था जो शिक्षकों के बीच बहुत चर्चित एवं प्रशंसित हुआ था और बच्चों के लिए रोचक पाठ्य सामग्री के रूप में लोकप्रियता हासिल की थी।
इस 25 पृष्ठीय आकर्षक साज-सज्जा युक्त लघु कृति ‘रोचक पहाड़े’ में पहाड़ों के माध्यम से जीवन मूल्यों, सामाजिक कर्तव्यों, लोकतांत्रिक अधिकारों, पर्यावरणीय नैतिक दायित्वों एवं अन्य आवश्यक जानकारियों को इस प्रकार गूंथा गया है कि बच्चे पहाड़ा पढ़ते हुए इन मूल्यों को सहज ही आत्मसात करते जाते हैं। राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा-2005 में स्पष्ट कहा गया है कि बच्चों में कल्पना, चितन-मनन करने की शक्ति विकसित करते हुए विषय वस्तु को रटना पद्धति से मुक्त कर समझ पैदा करनी है। इस दृष्टि से यह कृति महत्वपूर्ण बन जाती है क्योंकि यह बच्चों को पहाड़ा रटने से बिल्कुल मुक्त कर कल्पना पथ पर अग्रसर करती है। इसमें प्रत्येक पहाड़े के साथ एक नैतिक विषय एवं जानकारी को जोड़ा गया गया है। इस प्रकार बीस महत्वपूर्ण नैतिक मूल्य पहाड़ों के माध्यम से बच्चों तक सहजता से पहुंच रहे हैं। नेकी, स्वच्छता, अनुशासन, संतोष, सत्यनिष्ठा, धैर्य, ईमानदारी, ट्रैफिक नियम, आत्मविश्वास, संचारी रोग, देशप्रेम, स्कूल चलो, लैंगिक समानता, वृक्षारोपण, बाल अधिकार, आज्ञा पालन, पर्यावरण, मताधिकार, कोरोना से बचाव एवं हेल्पलाइन नम्बर आदि विषयों को पद्य शैली में एक लय, प्रवाह एवं तुकबंदी में रचा गया है जो बरबस ही बच्चे गाने को लालायित होते हैं। इनमें उच्चारण अवरोध न होने से एक गत्यात्मकता है और सहज मिठास भी। ये केवल शब्दों की बुनावट से तैयार मनोहर रेशमी फलक भर नहीं है बल्कि इसमें ध्वन्यात्मकता का मधुर राग भी है और रचनात्मकता की आग भी। इस सृजन सरिता धारा में प्रत्येक शिक्षक एवं बच्चे अवगाहन करना चाहेंगे। मुझे विश्वास है, यह कृति शिक्षक समाज में समादृत होगी और बच्चों का कंठहार बनेगी।
— प्रमोद दीक्षित मलय