ग़ज़ल
मैं ही नहीं रोया, तू भी रोई होगी
कई-कई रात मेरी तरह न सोई होगी।
तुझे भी याद आती होगी मेरी
तू भी कहीं गुमशुम सी खोई होगी।
रात में सपनों में कभी-न- कभी
अगल-बगल मुझको तो टोई होगी।
कमी तुझे भी खलती होगी मेरी
अगर दिल में प्रेम बीज बोई होगी।
भले ही दूर हूं मैं तुमसे जाना
दिल में मेरी तस्वीर तो कोई होगी।
— डॉ. अरुण निषाद