ग़ज़ल
दर्द जलने का जानता ही नहीं।
हाथ जिसका कभी जला ही नहीं।
क्यूँ न पूरा करे सफ़र तन्हा,
साथ जिसको कोई मिला ही नहीं।
हाल सबके बता रहा लेकिन,
हाल अपना उसे पता ही नहीं।
क्यूँ उड़े हैं हवाइयां रुख पर,
हादसा जब कोई हुआ ही नहीं।
सामने क्यूँ भला नहीं आता,
सामने जब कि आइना ही नहीं।
— हमीद कानपुरी