कविता

अंतर

भ्रम से बाहर निकलिए
वास्तविकता और कल्पनाओं का
अंतर करना सीख लीजिए,
वरना बहुत पछताएंगे
किसी काम के नहीं रह जायेंगे।
कल्पनाओं के गुलगुले आखिर
कब तक खाते रहेंगें,
जो सच सबके सामने है
उसे कब तक झुठलाते रहेंगे?
वास्तविकता और कल्पना में
दिन रात सरीखा फर्क होता है,
जमीन आसमान का अंतर होता है।
कब तक नदी की धारा में
रेत का महल बनाते रहोगे,
सच से मुँह मोड़कर
कब तक काम चला पाओगे?
एक दिन आखिर
कल्पनाओं के आसमान से
वास्तविकता की जमीन पर
आकर जब औंधे मुँह गिरोगे,
सोचो! तब अपने आपको
भला कैसे समझाओग?

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921