क्या लिपस्टिक इतनी जरूरी है ? (व्यंग्य)
‘लिपस्टिक’ क्या इतनी जरूरी है ? अंग्रेजों ने भारत छोड़ दिया, हम ‘अंग्रेजी’ को कब छोड़ेंगे ? ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन’ का 78 वां वर्ष है, यह दुनिया का पहला देशव्यापी आंदोलन था, जो नेतृत्वविहीन था । अंग्रेजों ने तो भारत छोड़ दिया, किन्तु ‘अंग्रेजी’ अब भी हावी है । ‘डॉक्टरी’ पूर्जा से लेकर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में अब भी अंग्रेजी हावी है । आखिर, अंग्रेजी भारत से कब जाएगी ? कब हम अपनी ‘माँ’ को अपनाएंगे ?
अब आते हैं लिपस्टिक पर ! जीवन में ऐसी अवस्था भी आती है, जो चाहे तो आँखों में नींद ही नींद ला दे या यह अवस्था अगर किसी घूरन-चक्कर में है, तो किसी की आँखों से नींद ही चुरा ले । नींद तब अलार्म के कोहराम से टूटती थी। अब भी जब बोझिल नींद आती है, तो बीते ‘कोचिंग’ की याद दिला देती है।
तब कैसे फ्रेशनेस के बाद कंघी से बाल सँवारता था, फिर केले छिलके से घिसे पेंट-शर्ट पहनता था और कोचिंग पहुँचते ही जहाँ पाती थीं…. लड़कियाँ ही लड़कियाँ…. और तब वहाँ खड़ी लड़कियां भरी दुपहरिया में पसीने की बूँदों को पोंछने की देरी न करते हुए भी लिपस्टिक से ओठों की सुंदरता को जरूर चस्पाती थी, लेकिन लड़कियों के लिपस्टिक को घूरते हुए मैं अक्सर यह सोचा करता था कि कैसे मर्दों के ‘लिप’ पर यह चस्पाई ‘स्टिक’ आ पड़ती है ? क्यों इसे बनाने वालों ने नारी में ऐसी फार्मूला स्पर्शित कराई हैं कि बलिष्ठ से बलिष्ठ मर्द भी निरा ‘शायर’ बन जाते हैं ? तब एकसाथ इतनी बौद्धिक कुड़ी मिलने के बावजूद किसी से भी आँखें चार नहीं हो पाई थी, यह भयानक ट्रेजेडी अब भी जारी है।
राजनीति में कोई अछूत नहीं है, सबको पता है केंद्र के वी.पी.सिंह की सरकार में कम्युनिस्ट पार्टी और बीजेपी दोनों शामिल थे । लालू जी पहलीबार बीजेपी के सपोर्ट से ही मुख्यमंत्री बन पाए थे, अन्यथा कभी बन भी नहीं पाते ! मुलायम जी और मायावती जी सबने बीजेपी से सपोर्ट लेकर सरकार बनाई हैं । कर्नाटक के कुमारस्वामी तक बीजेपी के सपोर्ट से ही पहलीबार मुख्यमंत्री बन सके थे । केंद्र में ममता बनर्जी बीजेपी के साथ चोंचें टकराई हैं । ऐसे में कोई पार्टी अगर बीजेपी को बदनाम कर राजनीतिक शुचिता की बात करते हैं, तो यह ऐसा ही है, जैसे कोई अपनी सगी मां को त्यागकर ‘नर्स’ को अपनी मां बताते फिर रहे हैं ।