वैधव्य जीवन
वैधव्य जीवन से पीड़ित माताओं और बहनों को उचित सम्मान मिले।
23 जून यानी ‘अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस’ ! बड़े समाजविद राजा राम मोहन राय, ईश्वरचंद्र विद्यासागर आदि ने विधवाओं के पुनर्विवाह कराकर ऐसी देवियों को उनकी नीरस हो चले जीवन को सुंदर और सुखद अहसास दिला पाए थे ।
वक्त के साथ चलना जरूरी नहीं, अपितु तथ्य के साथ चलिए ! मैं जिस समाज में रहता हूँ, यहां वैधव्य जीवन में आ चुकी ब्राह्मण कन्याओं के पुनर्विवाह की प्रतिशतता अत्यल्प है । अपनी युवापन में ही विधवा हो चुकी ऐसी ब्राह्मणी का पुनर्विवाह उनके जीवन को मधुर और सुखद बनाने के लिए आवश्यक है ! उसे विधवा-विलाप करने से बचाइए ! ऐसे सामाजिक प्रकाश को आगे बढ़ाइए ! बेटी समाज की होती है, न किसी कुम्हार की, राजपूत की या न गंगू तेली की, न धनेश्वर बाबू की !
वैधव्य जीवन को काला अध्याय बनने से रोकिये। दुबारा ‘काला अध्याय’ की किसी भी क्षेत्र में पुनरावृत्ति न हो, हमें सतर्क रहना ही होगा! हम लॉकडाउन में जी रहे हैं, आपात (कर्फ़्यू) -सी कई बातें लिए, किन्तु विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता विनष्ट नहीं हुई ! आपातकाल में प्रेस पर सेंसरशिप रहना मुँह पर जाबी (ताला) लगाना था, लॉकडाउन में यह जाबी (मास्क) कोरोना कहर के कारण है!