सर्वगुण संपन्न थे भगवान श्री कृष्ण
(जन्माष्टमी पर विशेष)
भगवान श्री कृष्ण का जन्म गोकुल, जिला मथुरा ;यू.पी.द्ध में हुआ। श्री कृष्ण द्वापर युग में यशोधा माता की कोख से पैदा हुए। उनके पिता श्री नंद किशोर थे। गोकुल गांव में आज भी श्री कृष्ण के समय के चिन्ह मौजूदा हैं। वह वृक्ष भी मौजूद है जिस पर कृष्ण को यशोधा माता ने बांधा था।
भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्त्सव को ही जन्माष्टमी कहते हैं। जिस काल में धर्म के सिद्धान्त जीवन में चरितार्थ न होकर केवल पुस्तकों में ही रह गए थे उस काल में कृष्ण का जन्म हुआ। सत्ता या सम्पत्ति के बिना भी हजारों लोगों का संगठन हो सकता है यह उन्होंने गोकुल में वैसा संगठन करके दिखाया।
कर्षति आकर्षति इति कृष्णः जो खींचता है, आकार्षित करता है वह कृष्ण। कृष्ण ने गोपो को इकट्ठा करके उनका प्रेम संपादन किया। कृष्ण के कहने पर गोकुल के लोगों ने वर्षों पुरानी इन्द्रपूजा की परंपरा तोड़ दी और गौवर्धन पूजा को स्वीकार किया। इस घटना से कंस, जरासंध आदि लोगों की धारणा को बड़ा धक्का लगा। कृष्ण ने सामान्य मानव को समझाया कि जेब में भले ही दमड़ी न हो, लेकिन तेजस्विता से और निष्ठा से एकत्र होकर सांस भी लेंगे तो जगत बदल जाएगा। भगवद् कार्य बिना स्वार्थ से करते रहो, प्रभु तुम्हारे पीछे खड़े हैं।
मूसलाधार वर्षा, बिजली की कड़कड़ाहत, बादलों के झुरमट, समस्त धरती जल थल ऐसे समय श्री कृष्ण का जन्म हुआ। जब जीवन में अंधकार बढ़ता है, निराशा के बादल छाते हैं, आपत्ति की बाढ़ आती है, दुख-मुसीबतें सिर चढ़ कर बोलती हैं तब भगवान श्री कृष्ण जन्म लेते हैं।
व्याप्त अंधकार में जब प्रकाश की किरणें फूट निकलती हैं, आसमान में सूर्य अपनी सुषमा को फैलाता है तब मानवता आनंद से पुलकित होती है। साम्राज्यवाद की मुसीबतों में पिसते हुए समाज को उसका तारणहार मिले, सत्ता और सम्पत्ति के शोषण से छुडाने वाला मुक्तिदाता मिले, निर्धनो-बेसहारों को मसीहा मिले, डूबते हुए को किनारा देने वाला और अध्यात्म व्यक्ति को उ(ारक मिले तो तब आनंदविभोर होकर कौन नहीं नाचता? उन मुक्तिदाता, मानवतावादी, गीता के उद्राता, लोगों के तारणहार और उ(ारक कृष्ण का जन्म हुआ तब सभी दुख संताप को भूलकर आनंदोल्लास, हर्षोल्लास में लोग नाचने लगे और वह दिन जन्माष्टमी के नाम से प्रसि( हुआ।
भगवान श्री कृष्ण में मानवता के सभी गुण थे वे एक सच्चे मित्र ;कृष्ण-सुदामा का प्रसंगद्ध, राजा जैसे, पिता और पुत्र, भक्तों को स्वंय भगवान लगते थे। उनके मस्तिष्क की आभा में सूर्य जैसा आकर्षण था, शांत, निर्मल एवं सही फैसला लेने वाले, लोगों में प्यार बांटने वाले। उनके आकर्षक में, बाणी में एक एैसी सुरभि थी जिसको पाकर सभी आनंदविभोर हो जाते। वैसे ही जन्माष्टमी प्रत्येक वर्ष आती है लोगों को कितना आनंद देती है। कृष्ण का जीवन की वैसा है जन्माष्टमी पानी प्रभुप्रेमियों के आनंद की पराकाष्ठा।
सभी दृष्टियों से कृष्ण पूर्णावतार थे। उनके जीवन में कहीं भी उंगली उठाने, न्यूनता जैसा स्थान नहीं है। वह संपूर्ण थे। वह आध्यात्मिक, नैतिकतावादी, समाजो(ारक, राजनीतिज्ञ, संस्कृति के स्वामी इत्यादि गुणों का गहरा समन्द्र थे। वे यशस्वी, राजनयिक, विजय यो(ा, धर्मसाम्राज्य के निर्माता, मानव विकास करने वाले, धर्म का महान प्रवचनकार, भक्तवत्सल और ज्ञानियों तथा जिज्ञासुओं की जिज्ञासा पूरी करने वाला जगद्वुरू यानी श्री कृष्ण।
भगवान श्री कृष्ण ने बुराई का नाश किया और अच्छाई की सुरभिया पैदा कीं। गोपालों से मिल कर उन्हों ने समाज बदल दिया। उन्होंने पाप और दंग को खत्म किया। नाग जाति के दृष्ट राजा का नाश किया।
भगवान श्री कृष्ण ने पैसे वालों का पूजनबंद करके ‘गो’ यानि उपनिषदों का पूजन शुरू करवाया। गोपवालकों को सेहतमंद रखने के लिए मारवन खीलाते थे। गोपवालकों में संगठता आती थी। सुख और शांति बढ़ती थी।
संस्कृति के लिए उनका हृदयत्वथित होता था इसीलिए तो जब दुर्योधन, कंस, कालयवन, नरकासुर, शिशुपाल और जरासंध जैसे जड़वादी, आसुरी संस्कृति के प्रचारक तांडव नृत्य कर रहे थे तब धर्म और नीति का सुदर्शन चक्र हाथ में लेकर उन्होंने उन षडरिपुओं का नाश किया। संस्कृति प्रेमी पांडवों के वे सदा के लिए मार्गदर्शक रहे। आपत्ति काल के प्रसंग में और कठिन काल में वे पांडवों को बचा लेते थे। अनुशासनहीणता से ही कौरवों की पराजय हुई।
भगवान श्री कृष्ण की कर्म को प्राथमिकता देते हैं। उन पर मोरपंख, गले में माला, साथ गाय यह सब चिन्ह शांति और सुखद प्रेम को दर्शाते हैं।
भक्ति और ज्ञान जिसने जीवन में उतारा है ऐसे निष्काम कर्म योग की जानकारी श्री कृष्ण ने गीता में दी है। गीता के श्लोक स्वयं भगवान द्वारा गाए गए हैं।
भगवान श्री कृष्ण की गोपियां उनके विशेयज्ञ गुण थे। भगवान श्री कृष्ण के गुणों को ही गोपियां कहते हैं। कृष्ण भारत के युगपुरूष थे।
आज के दिन सभी भारत वासियों को भगवान श्री कृष्ण के दर्शन पर चलना चाहिए। जाति-पाती, रंग रूप, वर्ण-भेद छोड़ कर भारत के सच्चे कर्मशील बनना चाहिए। जन्माष्टमी मनाएं और भगवान श्री कृष्ण हो जाएं।
— बलविन्दर ‘बालम’