हम सब मिलकर हमारी आधी आबादी को करें सम्मान
नारी के लिए “नारी समानता दिवस” सिर्फ एक दिन के रूप में मना कर खुश होना कितना अधूरा लगता है। क्योंकि नारी के बिना ही पुरुष अधूरा है।दुनिया अधूरी है। नारी हर युग में अपनी लड़ाई लड़ती आ रही है और लड़ भी रही है। नारी कभी न हारी। उसकी अपनी अहमियत का युद्ध अभी तक जारी। कौन कह सकता है कि वह है बेचारी? जरूरत यह है कि हम सब मिलकर मातृशक्ति का करे दिल से सम्मान।
दुनिया में सर्वप्रथम न्यूजीलैंड ने 1893 में महिला समानता की शुरुआत कर दुनिया को एक संदेश दिया कि महिला भी पुरुषों के समान है। संयुक्त राज्य अमेरिका ने अपने संविधान में 19 वां संशोधन कर सन 1920 में महिला समानता की हिमाकत की थी। महिलाओं को समानता का दर्जा दिलाने वाली महिला वकील बेल्ला अब्जुग के अथक प्रयासों से 1971 में 26 अगस्त को महिला समानता दिवस के रूप में मनाने का चलन शुरू हुआ।
महिला संपूर्ण संसार के मानव की आधारशिला है।धुरी है। केंद्र है। जीवन दात्री है।अनेक रूपों में हमारे जीवन को संबल और आधार प्रदान कर मानव संस्कृति के बाग को अंकुरित,पल्लवित, पुष्पित एवं सुगंधित बनाने का अद्भुत कार्य करती आई है। जिससे मानव सभ्यता और संस्कृति हंसती- खेलती- मुस्कुराती है।
घरेलू महिलाओं का आर्थिक मूल्यांकन कोई नहीं करता है यदि पुरुष सिर्फ महिलाओं के देह रूप और भोग्य समझता हो तो यह उसकी संकुचित मानसिकता ही कही जा सकेगी क्योंकि महिला ने हर रूप में अपने को अलग खड़ा किया है तो हर क्षेत्र में अपनी बहुमुखी प्रतिभा से लोहा मनवाया है। राजनीति हो चाहे खेल, सिनेमा हो या सेना, साहित्य हो या मीडिया, गृह कार्य हो या विज्ञान, स्वास्थ्य सेवा हो या सामाजिक कार्य श्रम हो या धर्म,विधि हो या शिक्षा तथा कला हो या वाणिज्य आदि प्रत्येक क्षेत्र में अपनी बहुमुखी प्रतिभा से समय-समय पर मानव सभ्यता को। देश-दुनिया को अचंभित किया है।
आज सबसे बड़ा सवाल यह है-की महिला सुरक्षा में देश-दुनिया कमजोर क्यों है ?
आज महिला को पुरुष के बराबर समान समझने समझने की संकीर्ण मानसिकता हम कैसे स्वस्थ एवं सुंदर सुरक्षित वातावरण प्रदान कर सके? वह दिन कब आएगा जब अखबार में महिला अत्याचार,बलात्कार, दहेज,प्रताड़ना जैसी घटना प्रकाशित होना बंद होकर सभ्य भारत सभ्य संसार कहलाएगा?
आज हम देख रहे हैं 21वीं सदी में भी पुरुष अपनी रूढ़ीवादी दूषित मानसिकता की सोच को बदलने में नाकामयाब है ।यह दुर्भाग्यपूर्ण है। हम नारी जाति के सहायक बने ना कि बाधक।महिलाओं को उच्च शिक्षा, संस्कार, अधिकार, उचित न्याय देकर उन्हें श्रेष्ठ बनाने के संकल्प लेने की जरूरत है। यदि ऐसा हम सही मायने में इमानदारी पूर्वक आत्मनिर्भर बना कर उन्हें खड़ा सके तो देश दुनिया की संपूर्ण मानव समाज को कामयाब होने से कोई नहीं रोक सकता है।
लोग दुहाई दे रहे हैं कर्तव्य की पर महिला के अधिकारों की रक्षा कर के तो देखो। उन्हें अन्याय से बचाकर न्याय करके तो देखो। धरती के समान होती है नारी फसल यदि अच्छी चाहते हो तो नारी जाति को उपजाऊ बना कर तो देखो। अबला-अबला कर ही जी रहे हो तो, नारी को सबला करके तो देखो।आखिर किस युग में नारी पुरुष से पीछे रही है। एक बार नारी जाति को विकास के दरवाजे खोलकर मौका देकर तो देखो। दुनिया की आधी आबादी को कौन रोन्द रहा है? उसे बराबरी का हक दे कर तो देखो।जो हर वक्त हर कार्य कर देती है बिना वेतन से उसका सही मायने में मूल्यांकन करके तो देखो। नारी जाति के बिना अधूरा है पुरुष फिर क्यों नारी को नीचा दिखाता है पुरुष?नारी जीवन के रथ का पहिया है इसके बिना कभी नहीं चल पाएगा पुरुष की नैया। नारी को रखो हर वक्त समान तभी सुधरेगी जीवन की कमान।सुंदर परिवार ,समाज, देश, दुनिया की कल्पना करनी है तो स्वच्छ एवं स्वस्थ वातावरण रूपी जीवन आधार से महिला समाज का निर्माण कर ही पुरुष अपना सही मायने में विकास कर पाएगा।नेपोलियन बोनापार्ट ने कहा था-” तुम मुझे एक योग्य माता दे दो मैं तुम्हें एक योग्य राष्ट्र दूंगा।”
हमारे देश में सिर्फ 11% महिला कर्मचारी है एक शोध में सामने आया है कि हमारे हमारा देश महिला रोजगार देने में इंडोनेशिया और सऊदी अरब से भी पीछे है।
हमारे देश की संसद में महिला सांसदों की बात करें तो महज14.3 प्रतिशत महिला सांसद ही आधी आबादी का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। जबकि अमेरिका में 32% महिला सांसद हैं तो वहीं बांग्लादेश जैसे देश में 21% है ।राजनीति में बराबरी का हक दिया जाना चाहिए ।ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2019-2020 के अनुसार 95 साल लग सकते हैं राजनीतिक असमानता खत्म होने में, आर्थिक आधार पर महिला-पुरुष आर्थिक समानता में 257 साल लग जाएंगे।
हमारा देश ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2019-2020 के अनुसार वैश्विक स्तर पर राजनीति में 98वें, स्वास्थ्य में 150वें,शिक्षा में 192वें एवं आर्थिक क्षेत्र में 149वें स्थान पर है ।महिला -पुरुष की बराबरी के मामले में हमारा देश भारत 112 वें स्थान पर है।
नारी शृंगार भी है और अंगार भी है।नारी विनाश भी है और सृजन भी है। नारी कोमल भी है और चट्टान से मजबूत भी है। नारी शक्ति, भक्ति, त्याग ,तपस्या की मूर्ति है। बस नारी को व्यक्ति, समाज,राष्ट्र और दुनिया कद्र करें। सम्मान दें तो नारी जाति का विकास होगा तभी सही मायने में पुरुष का उद्धार संभव है वरना सृष्टि का विनाश ही विनाश। किसी ने कहा है कि सभी धर्म पुरुष ने पैदा की है किंतु पालन तो महिला ने ही किया है इस धर्म, संस्कृति, सभ्यता की पालन हारी को स्वतंत्रता ,सम्मान और विकास के रास्तों में पुष्प वर्षा से स्वागत होना चाहिए। देश की आजादी में महिलाओं की भूमिका को कभी कम नहीं आंका जा सकता है। जब -जब भी जरूरत पड़ी है महिला ने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया है। कभी अपने बेटे को, भाई को,पति को, खोया हे तो कभी अपने स्वयं के बलिदान को देकर अपनी इज्जत को बचाने हेतु कीमत चुकाई है।
भारतीय संविधान में महिला अधिकार तो दिए हैं किंतु उन अधिकारों को आज तमाम महिलाओं को न जानकारी है, न समानता का व्यवहार, न समज, न प्रभाव। आज नहीं समाज की दकियानूसी सोच में परिवर्तन है आज सामाजिक सोच को बदलने की जरूरत है। आज के भौतिकवादी मानव में वैज्ञानिकता के साथ तार्किकता, व्यवहार की, नैतिकता की भाईचारे की शिक्षा से व्यक्ति, समाज और राष्ट्र को श्रेष्ठ सोच की अत्यधिक जरूरत है। सरकार की” बेटी बचाओ- बेटी पढ़ाओ” की योजना तभी सार्थक है जब समाज स्वयं अपने को बदलने की हिम्मत रखता हो। चाहे कोई भी सरकारी योजना महिला जाति के हित में बनी हो। पुरुष समाज की सोच में बदलाव हो। दृष्टिकोण में बदलाव हो तभी संभव है भले ही नारी को कितने ही कानूनी अधिकार दिए जाए अधिनियम बनाए जाए।
— डॉ. कान्ति लाल यादव