कई जिलों में अल्प वर्षा से सूखे की स्थिति निर्मित वर्तमान में होगई है ।बादलों की राह ताकते की कब बादल पानी बरसेंगे।कई जगह किसान बोनी की फिक्र,पशुओं की हरी घास की चाहत में राह निहार रहे है।मेघ बरसे तो भजिए की कढ़ाई चढे।बिना बरसे खाने का मजा वैसे ही कम हो गया।तेल के भाव आसमान पर,प्याज ,बेसन महंगा,सिर्फ पानी ही सस्ता है।जो टंकियों में बिक रहा है।नल भी एक दिन छोड़ के आरहे है।जैसे नल आते मुहल्ले में दौड़ भाग शुरू कोई चिल्लाता है-नल आगए रे।देखा जाए तो नल तो अपनी जगह फिट है।नल में पानी आ रहा है।जैसे किसी से पूछे भाई कहा जा रहा है।तो जवाब मिलता आटा पिसवाने जा रहा हूँ।उसे बोलना चाहिए अनाज पिसवाने जा रहा हूँ।उन्हें यदि समझाइश दे तो कहेंगे ज्यादा ज्ञान देने की आवश्यकता नही।
छतरी रेनकोट,मछली का जाल तो खूंटी पर टंगे हुए है।बारिश हो तो ये बेचारे भी बाहर की हवा खाए। कुएं, बावड़ी,तालाब और नदी विरहता के गीत मेंढको के संग गाने लगे है।वे भी चाहते बारिश हो।
इधर कोरोना की गाइड लाइन के पालन में जीवित आदमी की अर्थी को गांव में निकाला जाता।कही कही मेढक मेढकी का ब्याह रचा जाता तो कही र्भजन किए जाते।मगर जिद्धि बादल बरसता नही।सावन आने को है पेड़ो पर झूले बांधने की इच्छा नही हो रही क्योंकि बारिश की ठंडी फुवारे नही बल्कि लू का अहसास होता है।लोग अभी भी जेब मे कांदे ले कर घूम रहे ताकि लू ना लगे। मौसम की भविष्यवाणी बे असर सी लग रही।बारिश के गीत रेडियो भी नई बजा रहा।उसे लग रहा दीपावली के समय फटाके शोभायमान लगते।वैसे ही बारिश के मौसम में बारिश के गाने।बरखा रानी जमके बरसो मेरा दिलबर जा ना पाए झुमके बरसों का गीत सुन भी लिया तो आकाश की तरफ तो एक भी बादल नही कहा से बरसेगा।तपिश धरती की जा नही रही।बच्चे कागज की नाव बनाकर बैठे।स्कूल नही खुले तो पुरानी कापियाँ के पन्ने फाड़कर नाव बना कर रखी।खिलोने तो बाजार में महंगे।पहली बारिश की मिट्टी की सोंधी खुशबू को बेताब है युवा पीढ़ी पशु पक्षी पोखर में पानी तलाशते मगर उन्हें नही मिल पाता इसलिए घरो में पानी के पात्र का चलन पूण्य कार्य हेतु चल पड़ा।ज्यादा बारिश होने पर गाँवों में नदियों को देखने जाते कभी पुल के ऊपर तेज प्रवाह में बहती नदी की ऊंचाई के आंकड़े समाचार पत्रों में पढ़ने को आते।सूचना पटल भी पढ़ते जब नदी खतरे के निशान से ऊपर बह रही तो पुल पार करना खतरनाक है।बारिश की लेट लतीफी ही सब समस्या को उभारती है।गाँव मे नीम के पेड़ पर निम्बोलियों के पक जाने पर बारिश की भविष्यवाणी करते आ रहे है और गृहणियां पानी गिरने के बाद ही अचार डालने की प्रक्रिया करती है। बारिश में घूमने का आनन्द की बात ही कुछ और रहती।चारों तरफ हरियाली मगर अब बारिश की देरी ने उज्जैनी या बाग रोटी जैसे कार्यक्रम भी रद्ध कर दिए।डाल बाफले,बाटी बेचारी खेतों में जाने को तरश रही। कहने का मतलब ये है कि बारिश की लेट लतीफी कौन कर रहा।कही बाढ़ जैसे हालात तो कई जगह सूखा।सूखा देख कही राहत कार्य शरू हो सकते है।घरो की छतों से टपकता पानी,गाँव मे छत पर बारिश के पूर्व कवेलू चढ़ाने वाले एक्सपर्ट से कवेलू जमवा लिए जाते है।ताकि घर बारिश से सुरक्षित रहें।पानी बाबा ककड़ी भुट्टे ला जा ।गीत गा गाकर बच्चो के गले भी सूख गए।मगर बादल को तरश नही आया। बादल से विनती है कि जल्दी बरस जा नही तो सी एम हेल्प लाइन में आवेदन देना पड़ेगा।
— संजय वर्मा”दृष्टि”