लघुकथा

पराए

गिरीश जी ने अभी बेटे को घर में पांव रखा ही था कि बहु की आवाज़ आई “पापा जी को फिर यहां ले आए”

“धीरे बोलो पापा सुन लेंगे” बेटे ने कहा “अच्छा ही है जो सुन ले हमने कोई उम्र भर का ठेका ले रखा है”आरती ने कहा “बड़े भैया के पास क्यों नहीं भेज देते। उनका भी तो कोई फर्ज है।”राजीव चुप हो गया और बाहर गिरीश जी के पास आकर कुछ हिचकिचा कर कहने लगा “पापा आप कुछ दिनों के लिए बड़े  भैया के पास  चले जाते तो अच्छा होता”ये कहकर चुपचाप सर झुका कर बैठ गया। तभी अंदर से आरती की आवाज़ आई “सुनते हो मम्मी और पापा आ रहे हैं जाकर स्टेशन से लेकर आ जाओ। और इनका कहीं और इंतजाम कर दो या बड़े भैया को बोलो आकर इनको ले जाए” ‌‌
काफी देर तक आरती के बड़बड़ाने की आवाज़ आती रही। राजीव चुपचाप सुनता रहा। तभी उसने बड़े भैया को फोन किया पापा को ले जाने के लिए। बड़े भैया अपनी मजबूरी कहने लगे “अगर पापा यहां आएंगे तो मेरे घर में भी क्लेश शुरू हो जाएगा” । इतना सुनते ही गिरीश जी बाहर चले आए। दोनों बेटों में देर तक बातें होती रही। गिरीश जी यही सोचते रहे वो न जाने अपने बेटों के लिए कब पराए हो गए।
— विभा कुमारी “नीरजा”

*विभा कुमारी 'नीरजा'

शिक्षा-हिन्दी में एम ए रुचि-पेन्टिग एवम् पाक-कला वतर्मान निवास-#४७६सेक्टर १५a नोएडा U.P