क्षणिका
आइए एक बार फिर
कृष्ण जन्माष्टमी की
औपचारिकता निभाते हैं,
अपने कुविचारों को
कुछ पल के लिए छिपाते हैं,
कृष्ण कन्हैया को भरमाते हैं।
आइए एक बार फिर
कृष्ण जन्माष्टमी की
औपचारिकता निभाते हैं,
अपने कुविचारों को
कुछ पल के लिए छिपाते हैं,
कृष्ण कन्हैया को भरमाते हैं।