स्पंदन का गीत
रात-दिवस हो,कोई बेला,प्रियवर तुम अभिराम।।
स्पंदन के हर स्वर गाते,नित तेरा ही गीत।
तू है जब तक साथ मेरे तो,पाऊँगा मैैं जीत।।
मेरा यह जीवन लगता है,तेरा ही उपहार।
जीवन को हरसाकर मेरे,कर दे तू उपकार।।
जबसे तुझको पाया तबसे,जीवन ललित ललाम।
रात-दिवस हो,कोई बेला,प्रियवर तू अभिराम।।
अंधकार को परे हटाकर,तूने दिया उजाला।
जो थे मेरे बैरी उनका,आज हुआ मुँह काला।
तू मेरा वरदान तुझी से,जीवन में है हाला।।
तुम हो मेरी सारी खुशियाँ,जीने के आयाम।
रात-दिवस हो,कोई बेला,प्रियवर तुम अभिराम।।
दिल के स्पंदन में तुम बस,तुम ही साँझ-सवेरे।
तुमसे मेरा दिल कर बैठा,जन्म-जन्म के फेरे।।
साँसों की परिभाषा तुम हो,तुम हो मेरी मंज़िल।
तुमसे ही जीवन महका है,तुमसे ही है कल-कल है।।
हर युग में तुम संग हो मेरे,भले नए पैगाम।
रात-दिवस हो,कोई बेला,प्रियवर तुम अभिराम।।
— प्रो (डॉ) शरद नारायण खरे