उपन्यास अंश

लघु उपन्यास: षड्यत्र (कड़ी 9)

भीष्म विदुर की प्रतीक्षा ही कर रहे थे। विदुर को आया देखकर उनका मुखमंडल खिल गया। औपचारिक अभिवादन और कुशलक्षेम के उपरान्त वे गम्भीर चर्चा प्रारम्भ करने के लिए तैयार हो गये।
”हाँ विदुर! कहो क्या समाचार हैं?“
”समाचार चिंतित करने वाले हैं पितृव्य! जनसाधारण बिना देरी किए ज्येष्ठ राजकुमार युधिष्ठिर को युवराज के रूप में देखना चाहता है।“
”क्या वत्स युधिष्ठिर का इस हेतु प्रशिक्षण पूरा हो चुका है, विदुर ?“
”हाँ पितृव्य! उसका प्रशिक्षण पूर्ण हो चुका है। मैंने उनको राजनीतिशास्त्र और धर्मशास्त्र का तो पूर्ण ज्ञान करा ही दिया है, उसको कूटभाषा का भी पर्याप्त अभ्यास करा दिया है, जिससे वह निकटस्थ व्यक्तियों से गोपनीय वार्तालाप भी कर सकता है।“
”बहुत उचित किया तुमने, विदुर! जनसाधारण में और क्या भावनायें फैल रही हैं?“
”मुझे गुप्तचरों से पता चला है और स्वयं भी मैंने इसकी पुष्टि की है कि दुर्योधन के कुछ भाई किसी भी व्यवसायी की वस्तुएँ बिना उनका मूल्य दिये उठा ले जाते हैं और मूल्य माँगने पर प्रताड़ित करते हैं या वैसा करने का भय दिखाते हैं। इससे व्यवसायियों में बहुत असन्तोष फैल रहा है।“
”यह तो बहुत गम्भीर बात है। ऐसे कितने वाद हमारे पास न्याय के लिए आये हैं?“
”वाद तो एक भी नहीं आया, पितृव्य! क्योंकि कोई भी व्यवसायी कुरु राजकुमारों के भय के कारण वाद करने का साहस नहीं करता। वाद के अभाव में हम कोई भी कार्यवाही करने में असमर्थ हैं।“
”बहुत लज्जाजनक बात है कि स्थिति यहाँ तक पहुँच गयी है। इसका क्या समाधान किया जा सकता है, विदुर?“
”जनसाधारण को और मुझे भी एक ही समाधान दिखाई देता है कि राजकुमार युधिष्ठिर का शीघ्र से शीघ्र युवराज पद पर अभिषेक कर दिया जाये। इससे जनसाधारण में कुरु राजकुमारों के विरुद्ध वाद करने का साहस उत्पन्न हो जाएगा और युवराज युधिष्ठिर भी उनकी समस्या का उचित समाधान करके ऐसी लज्जाजनक घटनाओं को रोक सकेंगे।“
”सही सोच रहे हो, विदुर! ऐसा ही करना चाहिए। अब देरी करने का कोई कारण नहीं है। राजसभा में यह विषय लाना चाहिए और उचित निर्णय कर लेना चाहिए।“
विुदर ने सहमति में अपना सिर हिलाया, लेकिन कुछ सोचकर बोले- ”किन्तु यह निर्णय करना इतना सरल नहीं है, पितृव्य! मुझे आशंका है कि राजसभा में होने वाली चर्चा में युधिष्ठिर को युवराज बनाने का बहुत विरोध किया जाएगा।“
“विरोध किस-किस व्यक्ति की ओर से होने की संभावना है, विदुर?“
”पितृव्य! आप जानते हैं कि गांधारराज शकुनि को हमारी राजसभा में आने का अधिकार नहीं है, परन्तु राजकुमार दुर्योधन और दुःशासन उसके सीधे नियंत्रण में हैं। उनके माध्यम से वह अवश्य चर्चा में व्यवधान करने का प्रयास करेगा, क्योंकि वह दुर्योधन को युवराज देखना चाहता है। मेरे गुप्तचरों ने ऐसी सूचनायें दी हैं।“
”हूँ!“
”फिर महाराज धृतराष्ट्र भी प्रायः शकुनि से ही परामर्श करते हैं और उसी के परामर्श को अधिक मानते हैं। मेरे परामर्श पर उनको विश्वास नहीं होता। इसलिए उनकी स्वीकृति मिलना भी एक बड़ी समस्या है।“
”तुम्हारा कहना सत्य है विदुर ! लेकिन यदि राजसभा बहुमत से युधिष्ठिर को युवराज बनाने का निर्णय करती है, तो महाराज को भी उस पर अपनी स्वीकृति देनी होगी।“
”यह बात सत्य है, पितृव्य!“
”तो हम कल ही राजसभा में इस विषय पर खुलकर चर्चा करेंगे और युधिष्ठिर को युवराज पद पर अभिषेक कराने का निर्णय करेंगे।“
”जो आज्ञा, पितृव्य!“ विदुर ने कहा और फिर विदा लेकर अपने निवास पर वापस आ गये।
— डॉ. विजय कुमार सिंघल

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: [email protected], प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- [email protected], [email protected]