कविता
मन्नत जो माँगी थी मैंने कुबूल हुई
तुम्हें पाकर खुशियां बेहिसाब हुई
अब कोई ख्वाब नहीं पलते पलको पे
तू ही हकीकत है मेरी हर चाहतों के
दिल में जल रहे दीया तेरी मुहब्बत का
तू उजाला है मेरे कतरे-कतरे एहसासों का
तन्हाईयों का अब नहीं बसेरा यहां
खुशबू तेरी मौजूदगी का मेरी सांसों में बसा
तुमने जो छुआ था पहली बार मुझे
वह सौगात जिंदगी को महका गए
तू है मेरी जज्बातों,एहसासों में शामिल
तभी मेरी इन धड़कनों में आवाज है
फिदा है मेरी इक-इक सांसो का वजूद तुझपे
तुझसे जुदा होकर जीना नहीं बस मरना है मुझे