साँसों पर लिख नाम तुम्हारा
मन ही मन में झूम लिया
मोहना !!! तेरी छबि को मैंने
चितवन से ही चूम लिया
मौन निमंत्रण देती अँखियाँ
पीर हृदय में न्यारी
कदम्ब के नीचे खड़ी पुकारूँ
आजा मदन मुरारी
मन ने तुझको ढूढ़ा वर्षों
अलियों गलियों घूम लिया
साँसों पर लिख नाम तुम्हारा
मन ही मन में झूम लिया….!
प्रीतम पावन साथ तुम्हारा
साधना है ये युगों की
वन्दन तेरा करती साधें
पुकार तू सुन ले रगों की
तेरी मुरली बना कभी तन
कभी गीत बन गूँज लिया
साँसों पर लिख नाम तुम्हारा
मन ही मन में झूम लिया ।
तुम्हे पुकारें यमुना के तट
कहती है कल -कल धारा
रास रचाओ रमनबिहारी
सँवरे ये जीवन सारा
कभी नेह की बरखा भीगी
कभी विरह, मन भूँज लिया
साँसों पर लिख नाम तुम्हारा
मन ही मन में झूम लिया…!
— रागिनी स्वर्णकार (शर्मा )