धरती प्यासी अंबर निहारे, आओ कहाँ हो मेघा रे।
कई दिनों से आस ले बैठी, मुखड़ा न तेरा देखा रे।
गोरी तन्हा रूप निखारे, बरसात ना आई वैरन रे।
पिया मिलन को दिल धड़के,विरहन है बैठी जोगन रे।
पपीहा की सुन ले ओ बदरा, पीह पीह कर पुकारे रे।
कोयल बोली डाली डाली, कब मिलें नैन नजारे रे।
सुन पुकार दौड़े मेघा आए,खुश होते धरा मुख चूमे रे।
काली घटांएं छा गई नभ में, है आया सावन झूमे रे।
बिजली कड़की बादल गरजे,झमाझम बरसे बादल रे।
होंठों की लाली सूखने लगी,बहे आँखों का काजल रे।
खड़ी चौखट पे हूँ निहारूँ,अब तोआ जाओ साजन रे।
रिमझिम बरसे प्यार की बूंदे,आग लगी मेरे तन मन रे।
बारिश की बूंदों में भिगूँ, आ तू भी स्नेह बरसादे रे।
यौवन की नदिया में बहती, मुझे किनारे लगादे रे।
हाथों में हाथ डाल सजना, बाहों में आज घूमा दे रे।
काली घटांएं छा गई नभ में, तू सावन मैं झूमा दे रे ।
— शिव सन्याल