तय है
तय है शाम का आना
तय है फिर
उदासी में डूब जाना
बुहार के रखते हैं
तेरी यादों की ज़मीं
तय है किसी गुस्ताख़
हवा का फिर से धूल
उड़ा जाना।
एहसास खत्म करके
सोचा सुकून से रह लें
मेरे भरम को
तोड़ने के लिए फिर,
तय है तेरे किसी हमशक्ल का
मेरे सामने आ जाना।
सपने दिखाकर करना वादा
उसपार ले जाने का
हाथ थाम कर
मंज़िल तक पहुंचाने का
कोई जब बेहतर
मिल जाए हमसे
तय है तेरा बीच मझधार में
मेरा हाथ छोड़ जाना।