कविता

देश प्रेम की अमृत वर्षा

अश्कों में वो देश प्रेम की
अमृत वर्षा आज भी है,
जो सुनी थी कहानी देश प्रेम की।
नयनों में वो नमीं आज भी है,
जो बही थी नदियाँ खून की।।

हृदय के घावों से आज भी,
वो अमृत वर्षा बहती है,
जो देखी थी तलवारें वीरों की।
वादियों के घने कुहरे में भी
थी वो लालसा आजादी की ।।

सीने में आग की अमृत वर्षा थी,
हर एक सुरक्षित रहे परवाह
थी अपने दोस्तों की।
जम़ी आसमां एक कर दिया
फिर ये अमृत वर्षा हुई आजादी की।।

जश्ने ऐ आजादी बहुत महंगी थी,
कुर्बानी दी हर माँ के बेटे की।
ऐ मेरे वतन प्रेमियों आज
भी रक्षा करो अपनी
धरोहर भारत भूमि की।।

— सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ

सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ

स्नातकोत्तर (हिन्दी)