कहानी

अटूट रिश्ता

लगता है आज कोमल कुछ उदास  और उसके  जबरदस्ती मुस्काराने  के बाद भी उसके चेहरे की उदासी साफ दिखायी दे रही थी । इस बार पूरे छः महीने बाद हम दोनों सहेलियों का मिलना हुआ है ,यूँ तो अक्सर कोमल  और मेरा एक-दूसरे के घर एक -दो महीने मॆं एक चक्कर ज़रूर लग ही जाता था ,क्योंकि हम दोनों एक-दूसरे कॊ ज्यादा दिन  तक  देखे बगैर रह ही कहाँ पाती हैं ,लेकिन इस बार बस मैं भी अपनी किट्टी पार्टी तो कभी इनके प्रमोशन की पार्टी मॆं व्यस्त रही ।

इनके प्रमोशन की पार्टी पहला ऐसा पारिवारिक समारोह था जब कोमल शामिल नहीँ हो पायी थी, क्योंकि उसकी प्यारी बेटी का  भी एग्जाम था उस दिन । पहली बार मैं सबके साथ होते हुये भी खुद कॊ अकेला महसूस कर रही थी ।
अभी  बेटा  भी एक सप्ताह की छुट्टी पर  आया हुआ है ,तो इसे भी  साथ ही लेकर आयी हूँ ,  क्योंकि ये भी अपनी कोमल मौसी को हमेशा याद करता रहता हैं …और तरु से भी अच्छी दोस्ती है रवि की !कोमल मेरी बचपन की सहेली हैं और  हम दोनों सहेलियों  में सगी बहनों से भी बढ़कर प्यार हैं ,हम दोनों बचपन से स्कूल और कॉलेज मॆं भी एक साथ ही पढ़े , कोमल के पिताजी आर्मी ऑफिसर थे ,किंतु कोमल और उसकी माँ हमेशा अपने गाँव के घर  मॆं ही रहते थे ,अपने दादा जी के साथ ।
मेरे पिताजी शहर मॆं एक डिग्री कॉलेज मॆं प्रिंसिपल थे तो गाँव से स्कूली शिक्षा के बाद हम दोनों सहेलियों ने  शहर मॆं मेरे पिताजी के कॉलेज मॆं ही आगे की  पढाई पूरी  की !मुझे आज भी अच्छे से याद है कॉलेज के दिनों मॆं एक लड़का था शैलेश जो हमेशा कोमल के इर्द-गिर्द ही रहता था मौका पाते ही….क्योंकि कोमल थी ही इतनी सुंदर ।
उसने कई बार कोमल कॊ प्रेम पत्र भी भिजवाये वो भी मेरे ही हाथों से…क्योंकि तब पत्र ही माध्यम होते थे अपने दिल की बात एक-दूसरे तक पहुँचाने के लिये ।
मैं जानती थी कि कोमल भी मन ही मन शैलेश कॊ  चाहती है , किंतु जैसे ही मैं उसके प्रेम पत्र उसे देती तो वो मेरी जान कॊ आ जाती और हम दोनों मॆं हँसी मजाक के साथ ही  खूब झगडा होता था इस बात कॊ लेकर क्योंकि कभी-कभी मैं कोमल को बड़ा तरसाती थी शैलेश द्वारा लिखे प्रेम पत्र को देने मॆं…खूब चिढ़ाती थी और जब तक वो मेरी खुशामद ना कर ले तब तक पत्र उसके हाथो मॆं नहीँ पहुँचता था ।
सच ! स्कूल और कॉलेज के दिनो की बात ही अलग होती थी।
काश !वो दिन फ़िर से लौट कर आजाया करते तो मजा ही आ जाता ॥
वक्त तो जैसे पंख लगाकर उड़ रहा था, मेरे पापा ने मेरी शादी अपने उधोगपतिय मित्र के बेटे से कर दी जो अच्छी सरकारी नौकरी मॆं था और कोमल की सिफारिश मुझे ही लगानी पड़ी थी उसके माँ और पिताजी से और वो दोनों जल्दी ही  राजी  भी हो गये थे उन दोनों की शादी के लिये क्यौकि शैलेश ने भी इंजीनियरिंग कर ली थी ,उस ज़माने मॆं इन्जीनिर लड़के बड़े ही किस्मत वालों कॊ मिलते थे ।
हम दोनों एक ही शहर मॆं थी और हमारा प्यार शादी के बाद और भी बढ़ गया था और संयोग की बात ये थी की हम दोनों पहली बार माँ बनने वाली थी वो भी  दो-तीन महीने का ही  अंतर था ।
एक बार हम दोनों ऐसे ही बैठे हुये थे मेरे घर  ड्राइंगरूम मॆं जब मेरे पति कॊ पता चला कि कोमल भी माँ बनने वाली है तो अचानक से जाने उन्हें क्या सूझी कि कहने लगे “अरे वर्षा   क्यों न तुम्हारी और कोमल की दोस्ती कॊ हम रिश्तेदारी मॆं बदल दें ?”
मैंने उनकी तरफ़ आश्चर्य से देखते हुये हँसकर कहा “जी वो कैसे ?”
क्योंकि हम दोनों ही सहेलियों के कोई ननद या देवर तो थे नहीँ जो उनकी आपस मॆं शादी करके रिश्तेदारी जोड़ते !मैं सोच ही रही थी कि इन्होंने फ़िर हम दोनों की तरफ़ देखकर हँसते हुये कहा “भई देखो सीधी सी बात है तुम दोनों मॆं से जिसको भी लड़की या लड़का होगा तो हम अपने  दोनों बच्चो का अभी रिश्ता तय करते है आज़ ही ” ।
इनकी बात पर हम दोनों सहेलिया खूब जोर से खिलखिलाकर हँसने लगी और कोमल ने हँसते हुये कहा “लेकिन भाई साहब यदि हम दोनों के ही बेटे या बेटियाँ ही हुई तो….तब आप क्या कीजियेगा ?”
इन्होने कहा भई मैं शर्त लगाता हूँ कोमल के घर बेटी और हमारे घर बेटा ही होगा.ताकि हम कोमल की बेटी कॊ हमेशा के लिये अपने घर की लक्ष्मी बनाकर ले आयें !  सब इनकी बात पर हँसने लगे और मैं प्लेट मॆं रखी मिठाई  सबकॊ खिलाने लगी !देखते ही देखते मेरा बेटा रवि और कोमल की बेटी तरु दोनों बच्चे  कब बड़े हो  गये पता ही नहीँ लगा !
लेकिन आज कोमल की उदासी देखकर मैं भी चिंतित हो उठी !  वैसे तो  जब कभी कोमल ज्यादा परेशान होती तो अक्सर मेरे पास आ जाया करती थी , परंतु ! इस बार ना जाने क्या जिद्द हुई कि एक रट लगाये थी मैं ही उसके घर आऊं …।
ये लीजिये मैं अतीत मॆं खोई हुई थी कि कोमल चाय भी लें आयी बनाकर ….वो भी गरमागरम समोसो के साथ !
“ये लें वर्षा गरम-गरम सोमोसे खाओ औऱ चाय पियो औऱ रवि तुम भी लो ना बेटा ….जानते हो तुम्हारे लिये ही मैंने ये समोसे अपने हाथों से बनाये हैं ” ।
कोमल मेरी औऱ रवि कि तरफ़ देखे बिना ही बोले जा रही थी …मैं अच्छे से देख औऱ समझ रही थी कि ज़रूर कोई बड़ी बात हैं जो कोमल को इतना परेशान कर रही हैं ।
खैर ! हम तीनों ने पहले नाश्ता किया तब तक कोमल की बेटी तरु भी आ गई थी .तरु रवि कॊ अंदर अपने कमरे मॆं ले गई दोनों आपस  बातें करने लगे !दरसल  दोनों बच्चे भी एक -दूसरे से खूब घुलमिलकर रहते हैं बचपन से ही
मै औऱ कोमल अंदर दूसरे कमरे में चले आये बहुत देर तक हम दोनों यूँ ही खामोश बैठे एक-दूसरे के बोलने का इंतजार करते रहे …मैने ही कमरे में छाई खामोशी को तोड़ते हुये कोमल की तरफ़ देखते हुये कहा …” कोमल क्या बात हैं तू कुछ ज्यादा ही परेशान लग रही हैं इस बार ?”
“नहीँ ….नहीँ वर्षा ऐसा कुछ भी नहीँ …बस यूँ ही ” कहकर कोमल की आँखों के आँसू बिना इजाजत के उसके गालो पर लुढक आये ….
“ए पगली !बता ना क्या बात हैं ?देख रवि कुछ ही दिनो  की छुट्टी लेकर आया हैं औऱ हमें थोड़ी देर में ही यहाँ से निकलना होगा क्योंकि उसकी कल दोपहर की फ्लाइट हैं ,अब तू जल्दी से बता क्या बात हैं जिसने तेरे चेहरे की रौनक औऱ हँसी दोनों ही छीन ली हैं ” ?
कोमल ने मेरे हाथ पर अपना हाथ रखते हुये कहा “वर्षा मैं तुझे परेशान करना  नहीँ चाहती थी  डा. ने इन्हें कैंसर बताया है और पिछले एक  महीने से  इनके इलाज मॆं इतना रुपया खर्च हो गया और ऊपर से प्राइवेट नौकरी ही तो थी वो भी छूट ही गयी समझो।  बस ! घर के हालात पहले से कितने कमजोर हो गये हैं …औऱ ऐसे में जहाँ भी तरु के रिश्तें की बात चलती हैं ..सब कुछ पसंद आने के बाद आखिर में बात लेन-देन पर आकर टिक जाती हैं ..औऱ कई रिश्तें हाथ से निकल गये अब तो  तरू पच्चीसवा साल भी पार कर चुकी  हैं ”
कहते-कहते  उसकी आँखे तो मानों ऐसी हो रही थी कि अभी बाढ़ आजायेगी …मैंने कुछ देर चुप रहने के बाद कोमल की तरफ़ देखते हुये कहा ..
“मेरी नज़र में एक लड़का हैं तू कहे तो बात चलाऊं ?”
“हाँ ….हाँ …तेरी ही तो बेटी हैं तरु औऱ तुझे पूरा हक हैं वर्षा जहाँ तू कहेगी मैं ना  नहीँ करूँगी ….बस देने को बेटी के सिवा अब और कुछ भी नहीँ  हमारे पास “।
“अरे ! उन्हें तो तो तेरी बेटी के सिवा कुछ चाहिये भी नहीँ ”
“तो जल्दी से बताना कौन हैं लड़का ? और  क्या करता हैं ? देखने में कैसा हैं ?”
कोमल की उत्सुकता ऐसी बढ़ गई जैसे कि किसी बच्चे को नया खिलौना लेने की ….मैने उससे थोड़ा गम्भीर होते हुये कहा
” लेकिन एक शर्त हैं कोमल लड़के वालों की ?”
मेरी बात सुनकर वो फ़िर से उदास  हो गई .. “शर्त ? कैसी ? वर्षा …तू तो जानती हैं कि …….”
“अरे पहले शर्त तो पूछ ले …”
” तो …तो ..बताना “”शर्त ये हैं कि ..कि …..तू हमेशा खुश रहे ….भई लड़की की माँ खुश रहेगी तभी तो अपने दामाद औऱ समधी औऱ समधिन जी को गरम-गरम समोसे खिला पायेगी अपने हाथों से बनाकर ….”
कहते ही मेरी हँसी छूट गई …कोमल को अभी भी कुछ समझ नहीँ आया था औऱ वो अपलक मेरी तरफ़ देख रही थी …..मैने फ़िर उसे गले से लगाकर कहा …..
“कितनी पागल हैं न तू ? मेरे बेटे की खुशी को किसी औऱ की खुशी बनाने की सोच रही थी ….मेरे रवि औऱ इसके पापा को , मुझे हमेशा से तरु पसंद हैं औऱ मैं सिर्फ रवि के आने का ही इंतजार कर रही थी तुझे सरप्राइज देना चाहती थी …..पर ! तूने तो एक बार भी मुझसे पूछना ज़रूरी नहीँ समझा ? क्या भूल गई रवि और तरु के जनम से पहले ही इन्होंने दोनों बच्चों का रिश्ता भी पक्का कर दिया था ?”
“लेकिन वर्षा ये बात तो सच हैं कि हम दोनों बचपन की सहेली हैं औऱ एक-दूसरे पर जान छिड़कती हैं ….और मुझे भाई साहब की बात भी आज तक अच्छी तरह से याद है….पर ..र …अब  रिश्तें के बारे में इस डर से नहीँ सोच पायी कि ….” कहते-कहते कोमल रुक गई मैंने आश्चर्य से पूछा “कि क्या ? बोल ना रुक क्यों गई ….”
“यही की कहाँ तुम राजा भोज औऱ कहाँ मैं ….??”
“चल पगली प्यार औऱ रिश्तों को पैसों से नहीँ तौला जाता और….और दिन हमेशा एक जैसे नहीँ रहते हैं ,और हाँ ! तेरी हिम्मत भी कैसे हुई मेरी बहू  कॊ किसी और के घर की बहू  बनाने की ? आँ…..? चल मेरी बहू को लेकर आ औऱ हमारा मुँह मीठा करा जल्दी से …”
कोमल की आँखों में अब आँसू तो थे मगर खुशी के आँसू थे, आज वो मन ही मन खुश थी और यही सोच रही थी कि सचमुच  कितना अटूट रिश्ता होता है ये दिल का रिश्ता भी ,जिसे  दुनियाँ की बड़ी से बड़ी दौलत भी  तोड़ नहीँ पाती।कोमल और वर्षा की बात सुनकर तरू और रवि भी मन ही मन बहुत खुश थे और दोनों ही शर्म से आँखें झुकाये अब एक-दूसरे कॊ कनखियों से देख रहे थे  ॥

— सविता वर्मा “ग़ज़ल”

सविता वर्मा "ग़ज़ल"

जन्म- १ जुलाई पति का नाम - श्री कृष्ण गोपाल वर्मा। पिता का नाम-स्व.बाबू राम वर्मा । माता का नाम-स्व.प्रेमवती वर्मा । जन्म स्थान- कस्बा छपार , मुज़फ्फर नगर (उप) शिक्षा- आई.टी,ई, कहानी-लेखन डिप्लोमा । प्रकाशन- क्षेत्रीय , अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओ में । प्रसारण- आकाशवाणी के अनेक केन्द्रों से रचनाएँ प्रसारित । लेखन विधा-कविता,कहानी,गीत,बाल साहित्य,नाटक,लघु कथा, ग़ज़ल,वार्ता, हाइकु,आदि ।। पुरस्कार,सम्मान- वीरांगना सावित्री बाई फुले फैलोशिप सम्मान-2003 देहली। * महाशक्ति सिद्धपीठ शुक्रताल सम्मान-2004। *लघु कथा पुरस्कार सामाजिक आक्रोश -2005 सहारनपुर। *शारदा साहित्य संस्था जोगीवाला राजस्थान द्वारा हिंदी साहित्य सम्मान-2004 । *भारती ज्योति मानद उपाधि -2007 इलाहाबाद । *नेशनल फेडरेशन ऑफ ब्लाइंड देहली द्वारा समाज सेवा हेतु -2008 । *भारती भूषण सम्मान-2008 इलाहाबाद । *विनर ऑफ़ रेडियो क्विज़ ” दिल से दिल तक ” 20012 । *कहानी "नई दिशा" को "डा.कुमुद टीक्कु" प्रथम पुरस्कार -2014 अम्बाला छावनी। *गुगनराम एजुकेशन एन्ड सोशल वेल्फेयर सोसायटी बोहल द्वारा पुस्तक “पीड़ा अंतर्मन की” पुरस्कृत -2014 । *आगमन एक खूबसूरत प्रयास द्वारा सम्मान-2014 । *उत्कृष्ट साहित्य एवम् काव्य भूषण सम्मान-2015 खतौली। *नगर पालिका मुज़फ्फर नगर द्वारा सम्मान-2015 *साहित्य गौरव सम्मान ,नई दिल्ली -2015 ! *राष्ट्रीय गौरव सम्मान-लखनऊ-2015 ! *कस्तूरी कंचन सम्मान-नोयडा-2015 ! *लघु कथा "कमला"वूमेन एक्सप्रेस" द्वारा सम्मानित ! *सामाजिक संस्था “प्रयत्न” द्वारा “नारी शक्ति रत्न” सम्मान 2015 । *“आगमन साहित्यिक एवम् सांस्कृतिक संस्था द्वारा “विशिष्ठ अतिथि सम्मान” 2015 । *"आगमन गौरव सम्मान-2016 *"साहित्य कुमदिनी सम्मान" 2017 (गज केसरी युग,गाजियाबाद द्वारा ) *"आगमन तेजस्वीनी सम्मान-2018 ! "श्रीमती सरबती देवी गिरधारीलाल साहित्य सम्मान-2019 (गुगनराम एजुकेशन एण्ड सोशल वेलफेयर सोसायटी बौहल हरियाणा द्वारा ) *विशेष—नारी सशक्तिकरण पर बनी फ़िल्म “शक्ति हूँ मैं” में अहम भूमिका। *पुस्तक- “पीड़ा अंतर्मन की” प्रकाशन-2012। *संपादन- काव्य शाला (काव्य सन्ग्रह), "कस्तूरी कंचन " काव्य संग्रह ! अहसास (ग़ज़ल संग्रह) , समर्पण-5(काव्य संग्रह)। “श्रोता सरगम” वार्षिक पत्रिका। "भाव कलश" काव्य संग्रह । सम्बन्ध- “प्रयत्न” सामाजिक संस्था मुजफ्फरनगर सदस्य॥ “अखिल भारतीय कवियित्री सम्मेलन " आजीवन सम्मानित सदस्या । "वाणी" एवम "समर्पण" साहित्य संस्था ( मुजफ्फरनगर )सहित अनेक सहित्य संस्थाओं की सदस्या । सम्पर्क- सविता वर्मा "ग़ज़ल" श्री कृष्ण गोपाल वर्मा , 230,कृष्णापुरी , मुज़फ्फर नगर,पिन-251001 (उप्र) ई मेल [email protected] मोबाइल-08755315155