लघुकथा

संवेदना

“बाबूजी, पाँच रूपये दो आज!”
 फकीरे की करुण विनती सुन दीपक बाबू को आश्चर्य हुआ। फकीरा जाना पहचाना भिखारी है,कभी न कभी दिखाई पड़  ही जाता है।
“पाँच रूपये क्यों?”
“दवाई खरीदनी है, बुखार की”
“किसे बुखार है” दीपक बाबू ने उत्सुकता से पूछा।
 “किसना को सर्दी लग गई है,और बुखार भी।”
“किसना?”
“वो भी भिखारी है, बड़ा असहाय है!”
फकीरे की संवेदना देख दीपक बाबू की आँखें गीली हो गई,उसे दस रूपये का एक नोट देते हुए कहा,” किसना असहाय नहीं है,  तुम तो हो न।”
— निर्मल कुमार दे

निर्मल कुमार डे

जमशेदपुर झारखंड nirmalkumardey07@gmail.com