आँखें छलक गई
ठुकरा कर मेरे प्यार को
तुँने अच्छा नहीं किया
मर जाऊँगा तेरे दर पे
फिर जीवन में पछतायेगा
दिन रात तेरे प्यार में
ताना बाना बुनता था कभी
सपनों में भी तेरे इश्क में
संग संग डोलता था तभी
इश्क की दरिया में तुम
मेरे साथ उतरता गया
वर्षा हो या हो धूप में
साथ साथ वक्त बीतता गया
फिर क्यों किया मेरे संग
छलावा का घृणित ये काम
फिर क्यूं रचा मेरे लिये
षड़यंत्र का ये पयाम
क्या हुई थी मुझसे खता कोई
ये तो बताता तुँ जा
किस जुर्म की दी है हमें
ये नरक जैसी सजा
मोहब्बत में मैं तुम्हें अपना
मनमीत समझता था
दीपक जला कर रात में
इन्तजार करता था
जब स़ुबह हो गई थी
आँखें पथरा सी गई
रात तेरे इन्तजार में
मेरी आँखें छलक गई
— उदय किशोर साह