ग़ज़ल
आओ नुक्कड़ पे चाय पीते हैं ।।
चन्द लम्हे सकूँ के जीते हैं ।।
क्या बताएँ ए दोस्त तेरे बिन..
सारे लम्हात रीते रीते हैं ।।
रम औ व्हिस्की तुम्हें मुबारक हो..
हम तो सादा हैं चाय पीते हैं ।।
जिन्दगी इस कदर हँसी भी नहीं..
जैसी दिखला के लोग जीते हैं ।।
तुमसे बिछुड़े हुए ये कुछ लम्हे..
मुझपे सदियों के जैसे बीते हैं ।।
— समीर द्विवेदी नितान्त