कविता

गांधी को गढ़ना होगा

गांधी को गढ़ना होगा मगर
मगर कैसे कुछ विचार कीजिये,
गांधी के पद चिन्हों पर
चलने की ठान लीजिए।
सत्य अहिंसा के पथ पर
चलना जरुरी है,
बस एक बार गांधी को
दिल में स्थान दीजिये।
गांधी को गढ़ने से पहले
खुद को तो जरा गढ़ लीजिए,
गांधी गांधी रटने से भला
क्या कुछ नया हो जायेगा?
गांधी की राह पर
दो चार कदम ही सही
पहले चल तो लीजिये।
गांधी को गढ़ना बहुत सरल है
गांधी को पढ़ना भाषण झाड़ना
और भी सरल है यारों,
गांधी पथ पर बढ़ने का
तनिक हौसला तो कीजिए।
गांधी को गढ़ने की चिंता में
क्यों दुबले हो रहे हैं हूजूर,
पहले अपने आप को गढ़ने का
संकल्प तो कर लीजिये।
भूल जाएंगे कि गांधी को भी गढ़ना है
क्योंकि खुद को गढ़ने में ही
आप सब कुछ भूल जायेंगे,
तब गांधी हमें गढ़े गढ़ाए ही
आखिर नज़र जो आयेंगे।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921