काजल ( दोहे)
टीका काजल को लगा, लाल भाल चमकाय ।
बुरी नज़र से ढाँक ले, माँ तो नेह लुटाय ।।
काजल सी कारी धरी, घनी अँधेरी रात ।
तारे टिम-टिम करत रे, आशा-दीप जलात ।।
अँखियन काजल डार कें, घर सें निकरी नार ।
द्वित-सो चमके गौर-मुख, देत क़रेज़ा काट ।।
काजल सो मनवा करें, अब तो कर लो साफ़ ।
सच को दीप जलाय लो , प्रभु कर देहें माफ़ ।।
का-जल को अब हाल रे, काजल दियो बनाय ।
धौन-धान सब डार कें, नाश करत ही जाय ।।
— भावना अरोड़ा ‘मिलन’