प्रसन्नता
सुबह-सुबह अखबार खोलते ही प्रसन्नता को एक खबर दिखी-
”पानी के अंदर ज्वालामुखी फटने से जापान के लोगों को मिली नई जमीन”
यह खबर प्रसन्नता को अद्भुत और विस्मयकारी लगी. इसके दो कारण थे. पहला उसने कभी पानी के अंदर ज्वालामुखी फटने की बात नहीं सुनी थी, दूसरे ज्वालामुखी फटने से बरबादी की बात तो उसने सुनी थी, आबादी की नहीं. आपदा से भी लाभ होता है! सोचते-सोचते वह अतीत के आतिशों में गुम हो गई.
”जब मेरा जन्म हुआ था, तो दादाजी ने मुझे गोद में उठाया और प्रसन्न हो गए, बस मेरा नामकरण हो गया प्रसन्नता.” वह 65 साल पहले की बात सोच रही थी.
”सचमुच मैं खुद भी प्रसन्न रहती थी और सबको प्रसन्नता भी वितरित करती थी.” वह शायद अपनी प्रसन्नता को ढूंढ रही थी.
”पिछले साल न जाने क्या हुआ, नींद भी मुझसे रूठ गई थी, मैं अवसादग्रस्त भी हो गई थी और अस्पताल पहुंच गई. जो मेरी हालत थी, मैं ही जानती हूं!” उसके मुख पर अवसाद की रेखाएं स्पष्ट उभर आई थीं.
”कठिन समय भी बीत गया. डॉक्टर्स ने मुझे छुट्टी देने की योजना बनाई. छुट्टी मिलने से पहले वाली रात मैं गुसलखाने में गिर गई.” वह दृश्य याद करके उसे ऐसा लगा जैसे वह अभी गिरी हो.
”डॉक्टर्स ने त्वरित उपचार भी किया और मेरा सी.टी.स्कैन भी करवाया. सी.टी.स्कैन की रिपोर्ट ठीक आई और मुझे छुट्टी मिल गई. गोली लेकर भी मुझे नींद नहीं आती थी, मैं इससे बहुत परेशान थी. डॉक्टर्स के मुताबिक रात में गिर जाने का कारण नींद की पूरी गोली ही थी. मेरी गोली आधी कर दी गई और मैं घर आ गई.” उस दिन की याद उसे अनमना कर गई.
”जाने क्या हुआ कि गोली आधी होने से मुझे नींद भी ठीक आने लगी और धीरे-धीरे मेरी गोली भी बंद हो गई, अवसाद भी कम हो गया था. विपदा से मुझे भी कितना लाभ हुआ!” वह प्रसन्न होने को थी, तभी किसी के जगने की आहट आई और प्रसन्नता मुख पर प्रसन्नता ओढ़े फिर उसी समाचार में खो गई.