कविता

खुद से ही मुलाकात नहीं हो पाती

सुधीजनों का कहना है
सबसे बात करो
मुलाकात करो
पर कभी तो तनिक समय निकालकर
खुद से भी बात करो
मुलाकात करो
विडंबना यह है
कि हमारी सबसे बात हो जाती है
मुलाकात हो जाती है
खुद से ही बात नहीं हो पाती
खुद से ही मुलाकात नहीं हो पाती.

सुधीजनों का कहना है
अपने अंदर की खूबसूरती को देखो
उससे मुलाकात करो
हम सबकी खूबसूरती देखते अवश्य हैं
पर बाहर की खूबसूरती देखते हैं
खूबसूरती देखकर खुश भी होते हैं
अपनी खूबसूरती भी देखते हैं
खूबसूरती देखकर खुश भी होते हैं
विडंबना यह है
कि अपने अंदर की खूबसूरती से
हमारी मुलाकात नहीं हो पाती.

सुधीजनों का कहना है
आनंद का दरिया तुम्हारे अंदर बह रहा है
उसका दीदार करो
उससे मुलाकात करो
हम आनंद से मुलाकात करना चाहते हैं
आनंद को समाचारों में खंगालते हैं
फेसबुक-ट्विटर-ट्रोल-चुटकुलों में ढूंढते हैं
आनंद के नाम पर मुस्कुरा भर देते हैं
इस तरह का आनंद पाकर खुश होते हैं
सांझ होते तक हमें अहसास हो जाता है
आनंद के दरिया क्या आनंद के कतरे तक से
हम निहायत बेवाकिफ़ रह गए हैं
विडंबना यह है
कि इस तरह आनंद के दरिया की
झलक तक नहीं मिल पाती
आनंद के दरिया से हमारी मुलाकात नहीं हो पाती.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244