देवी दुर्गा
देवी दुर्गा हमारी ‘माँ’ है और कोई भी माँ ‘स्वयमेव’ अभिभावक हैं । उन्हें हमारी आवश्यकता नहीं है । दरअसल, हम ‘नर-नारी’ अपने-अपने स्वार्थसिद्धि के लिए उनकी प्रति समर्पित हैं!
जहाँ तक किसी पूजा-कार्यक्रम के लिए व्यवस्था की बात है, उनके लिए पूजा-समिति होती है, जिनमें कोई भी किरदार हो सकते हैं!
जिसतरह से ‘इलेक्शन’ सामूहिक-प्रयास से सफल और सुफल होता है, उसी भाँति किसी प्रकार के उत्सव या समारोह सामूहिक-प्रयास से ही सफल और सुफल होते हैं ! ऐसे आस्तिकीय-कार्यकर्त्ताओं को ढूढ़ना समिति के कार्यान्तर्गत आते हैं!
यह कहना सरासर गलत है कि अगर ‘मैं’ नहीं होता, तो फलाँ सार्वजनिक-कार्य सुसम्पन्न ही नहीं होता! इस ‘मैं’ बोध में अहंकार बसा है।