वक्त
सभी वक्त के हांथों की कठपुतली यहां
कब हंसना कब रोना है किसे पता?
मुसाफिर है सभी जिंदगी में
चले ही जाना है नहीं कोई ठिकाना यहां
समय के थपेड़ों से, कोई बच नहीं पाया है
इंसान बस पत्थर की मूरत है
जज्बात, एहसास इच्छाएं सबकुछ
वक्त के हांथों का खेल यहां
जिनको मिल गई खुशियां नसीब है उनका
वर्ना परिस्थितियों ने सबको धूल चटाया है
कौन अपना कौन पराया
इंसानियत है जिसके पास
उसी से बंधती है उम्मीद की डोर यहां