गीत
उजियारा जो दूर हो गया,आज बुलाना होगा।
अँधियारे को मत कोसो तुम,दीप जलाना होगा।।
मातम की बुनियादें गहरी, सच पर तो पहरा है।
झूठ,कपट का मुंसिफ से तो, सौदा जा ठहरा है।।
सत्य,न्याय के मधुर तराने,अब तो गाना होगा।
अँधियारे को मत कोसो तुम,दीप जलाना होगा।।
सुर,लय गलियारों तक सीमित, मंच बेसुरे हैं सब।
सबके अपने स्वार्थ पल रहे, सच में,लोग बुरे अब।।
रूठ गईं जो हमसे खुशियाँ,वापस लाना होगा।
अँधियारों को मत कोसो तुम,दीप जलाना होगा।
मर्यादाएँ कलप रही हैं, गरिमाओं के दुर्दिन।
मूल्यपतन की चाँदी है अब, दिखता बाह्य प्रदर्शन।।
कटुता को तो इस बस्ती से,निश्चित जाना होगा।
अँधियारों को मत कोसो तुम,दीप जलाना होगा।।
— प्रो (डॉ) शरद नारायण खरे