तन हरियर दूब हुआ
नयन तीर से घायल उर पीड़ा घाव भरा।
स्नेह लेप लगा प्रिये, दो सम्बल छांव भरा।
एक बार देख सखी झांक हृदय में मेरे,
दिल में है मृदु प्यार बहुत निर्मल भाव भरा।।
जग के व्यवहार निभाते मानस ऊब गया।
मिला स्पर्श तुम्हारा तन हरियर दूब हुआ।
अलकों की सघन छांव में पुष्पित प्रेम जगा।
हाथों में चांद लिए सपनों में डूब गया।
प्रेम डगर में चलते ही दुनिया बदल गयी।
मन-सरिता की भटकन, धार-दिशा बदल गयी।
जब-जब हारा खुद से तुम्हें देखता आया,
उर की पीड़ा मुसकायी, सांसें संभल गयी।
— प्रमोद दीक्षित मलय