गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

कौआ एवं चिड़िया ने मिलकर खिचड़ी ख़ूब बनाई।

चतुराई से चोरी कर के बांदर ने हथिआई।

जिसके अस्तित्व को पहले खुद ही पैदा किया,

उसी इन्द्र धनुष को बदलोटी लूटने आई।

मण्डल, अम्बर, धरती, सागर, मापे जा सकते हैं,

मगर कोई माप सका ना मस्तिष्क की गहराई।

बंदर ने इन्साफ में सारी रोटी खुद हड़प्प ली,

रोटी वितरण से जब पड़ गई बिल्लियों बीच लड़ाई।

मुमकिन है साधक को शक्ति का वरदान मिलेगा,

यदपि अंगीकार बनेगी भक्ति में तनहाई।

जैसे तीर कमान से चढ़ने से पहले ही टूटे,

एैसे सूली पर चढ़ जाती है असफल अँगड़ाई।

दिव्य शक्ति, भव्य लालायत, एक नूर इलाही,

मेरे दिल में यादों वाली गूँज रही शहनाई।

सूरज खो कर, चंदा को सत्ता देना ठीक नहीं,

वह तो तारे-तारे में अँधेरे का कर्ज़ाई।

यह तो सब कुछ ले डूबेगा साहिल ने समझाया,

पर, लहरों ने सारी सत्ता भँवर हाथ थमाई।

लोगों ने सिरताज सजाने, लोगों ने खो लेने,

अन्दोलन एंव संकल्प के बदलाव में है सच्चाई।

मैं कहता झील किनारे मेहनत करना ठीक नहीं,

’बालम‘ बच्चों ने जिद् कर के थी दीवार बनाई।

—   बलविन्दर ’बालम‘ गुरदासपुर

बलविन्दर ‘बालम’

ओंकार नगर, गुरदासपुर (पंजाब) मो. 98156 25409