गीत/नवगीत

पीड़ा

बाँट रहा हूँ पीड़ा जग की, मैं पीड़ा का गायक हूँ
अंतर्मन का एक चितेरा, मैं शब्दों का नायक हूँ

मौन जगत होता कष्टों से,  तब मुखरित हो जाता हूँ
सकल वेदना बसा स्वरों में, करुण गान बन जाता हूँ
मैं हर लूँ संताप जगत के, और शीतलता दायक हूँ
अंतर्मन का एक चितेरा, मैं शब्दों का नायक हूँ। 1।

हुए जुदा जब दो प्रेमी मन, तब आँखें मेरी  रोयीं
तक-तक हारीं दरस दीवानी, रातों में भी ना सोयीं
लिख न सकूँ मैं विरह-वेदना, ना इतना नालायक हूँ
अंतर्मन का एक चितेरा, मैं शब्दों का नायक हूँ।2।

जब ममता पलकों में सूखे, कलम मेरी सिसकी भरती
चंचल यादें कहीं न थकती, यहाँ-वहाँ नर्तन करतीं
मेरे भाव बने हैं जोगी, मैं जन – मन का गायक हूँ
अंतर्मन का एक चितेरा, मैं शब्दों का नायक हूँ।3।

— शरद सुनेरी